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________________ [ ३० । संसार के सभी पदार्थ सत्-असत् रूप, नित्य-अनित्य और सामान्य विशेष रूप हैं उन सबका समावेश महाज्ञानी पुरुषों ने दो नयों में किया है। (१) द्रव्यार्थि नय (२) पर्यायाथिक न्य। सात नयों का वर्णन हम भागे करेंगे। उनमें ये दो नय व्यार्थिक और परियार्थिक मुख्य हैं। वस्तु स्थिति का यथं थे और सपूर्ण ज्ञान समझने के लिये जन महर्षियों ने सात नयों की विचार श्रेणी उत्पन्न की है। किसी भी वस्तु का इन सात नयों द्वारा अवलोकन करने से उसका संपूर्ण और यथास्थिति ज्ञान प्राप्त होता है। वास्तव में अगर देखा जाय तो यह बुद्धि बल का खंज़ाना एक है । नय एक 'विशेष श्रेणी है । बल्कि यों कहना चाहिए कि किसी भी वस्तु का यथार्थ और संपूर्ण ज्ञान बताने वाला यह एक आइना है। जैन दर्शन में यह सिद्धांत बहुत बड़ा महत्व रखता है। सातों नय एक दूसरे की अपेक्षा से संबन्धित हैं। निरपेक्ष हो तो वह मिथ्या है। प्रमाण ज्ञान को सातों नय प्राय करते हैं। जैन धर्म का मानना है: सातों नय से जिन-वाणो सिद्ध है। और जो वचन नयों से सिद्ध होता है वही प्रमाण भूत कहा जाता है। अब हम द्रव्याथिक और पर्थिक नय के विषय में विचार करेंगे। मित्ययरवयणसंगह, विसेस पत्थारमूल वागरणों । दव्वठिठो य पज्जवणो य सेसा वियप्पासि ।। (सन्मति प्रकरण)
SR No.022554
Book TitleSyadvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarlal Dahyabhai Kapadia, Chandanmal Lasod
PublisherShankarlal Dahyabhai Kapadia
Publication Year1955
Total Pages108
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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