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[ ४ ] से साहित्य के उपासक भी हैं; परन्तु मेरी ७० वर्ष की इस ज़िन्दगी में मैंने यदि कोई समाजोद्धारक महापुरुष देखे हैं तो वे केवल दो हैं-एक हैं, सद्गत योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागर सूरीश्वर जी और दूसरे हैं, अपने पंजाब केसरी' आचार्य देव श्री विजयबल्लभ सूरिजी महाराज । जैन समाज में बोर्डिङ्ग, गुरुकुल, विद्यालय कन्याशाला तथा लाइब्ररी आदि अनेक संस्थाओं की स्थापना कर शिक्षा की नींव डालने वाले, श्रावक समाज के सहायक, सर्वधर्मों के प्रति सहिष्णुता रख कर जैन धर्म के गौरव में वृद्धि करने वाले, विश्वभावना के प्रेरक, स्थान स्थान पर धर्म का प्रचार करने वाले तथा साहित्य की उपासना करने वाले ये दोनों महापुरुष आदि युगपुरुष की कार्य दिशा में समान है। दोनों महापुरुषों की कार्यदिशा भिन्न होते हुए भी दोनों का ध्येय एक ही है।
पूज्य श्री पर गुरुदेव श्री आत्माराम जी महाराज का अवर्णनीय धर्म प्रेम था । पूज्य श्री की भी उनके प्रति अनन्य भक्ति थी। यही कारण है कि गुरुदेव ने उनको अपना पट्टधर बनाया है। उनके निष्कपट हृदय विशुद्ध चरित्र, निष्पाप दिल तथा कार्य करने की उत्कट इच्छा आदि अनेक सद्गुणों ने ही उनको उच्च स्थान पर प्रतिष्ठित किया है। ____ पूज्य श्री दीर्घायु हों तथा उनकी समाज सेवा की और शासन प्रभावना की अभिलाषा उनके जीवन के अन्तिम क्षण तक रहे। साथ ही जैन शासन की विजय हो, ऐसी अन्तःकरण की इच्छा के साथ विराम लेता हूँ।
* पू. आ. श्री विजयबल्लभ सूरीश्वर जी महाराज हीरक जयन्ती अङ्क में लिखे गये लेख से उद्धत (पृष्ठ ११६)