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त्मक साहित्य भी प्रकाशित हुआ । ऐसे समय पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज तथा उनके 'बल्लभ' शिष्य और अपने पंजाब केसरी श्री विजयबल्लभ सूरिजी -इन दोनों गुरू शिष्यों ने मिलकर उनका प्रबल विरोध किया और उनके आक्षेपों का करारा जवाब देने वाला साहित्य भी प्रकाशित किया । इस प्रकार उनका पराभव कर जैन शासन को विजयवन्ता रक्खा। शासन के ऊपर उनका यह उपकार कोई साधारण नहीं है ।
अन्त में वहां की जनता ने इस गजग्राह को मिटाने और इन दोनों महापुरुषों को एकत्र करने का विचार किया । पूज्य श्री आत्माराम जी को स्वामी श्री दयानन्द सरस्वती से मिलने के लिये आमन्त्रण भेजा गया । आमन्त्रण का पूज्य श्री ने सादर सत्कार किया और इस प्रकार उस गजग्राह का अन्त हुआ। ऐसे ऐसे प्रतापी मुनि रत्न शासन की शोभा और समाज के आभूषण रूप हैं ।
जिस प्रकार मनुष्य की छाया उसके पीछे २ चलती है, उसी प्रकार प्रभावशाली पुरुषों की प्रभाव छाया भी उनके साथ साथ चलती है । वे जहां भी जाते हैं, लोगों पर उनका प्रभाव पड़े बिना नहीं रह सकता । प्रभाव की यह छाया ही जब मूर्तस्वरूप धारण कर लेती है, तब वह चमत्कार या सूरिमन्त्र प्रभाव के नाम से पहिचानी जाती है ।
पूज्य श्री का प्रभाव पंजाब की हिन्दू, सिक्ख आदि समस्त जनता पर भी पड़ा है, यही उनके विशाल हृदय का परिचायक है । जिनका हृदय विशाल एवं निष्पाप होता है, वे ही महापुरुष हो सकते हैं। जिनकी दृष्टि संकुचित होती है, वे कूपमण्डूक की तरह हैं । ऐसे व्यक्ति जनता पर अपने धर्म का प्रभाव नहीं डाल सकते । जैन समाज में काफी संख्या में मुनिराज हैं । उनमें से बहुत से भिन्न भिन्न दिशा में शासनोन्नति के कार्य कर रहे हैं। बहुत