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७॥२२
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सप्तमोऽध्यायः
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* साकारमन्त्रभेद में वा स्वदारा मन्त्रभेद में हकीकत सत्य होते हुए भी इस हकीकत के प्रकाशन से स्व-पर में द्वेष, अपघात, लड़ाई, क्लेश-कंकाश इत्यादिक महान् अनर्थ होना सम्भव है। इसलिए प्रांशिक व्रतभंग होने से यह अतिचार रूप है ।
साकार मन्त्रभेद और स्वदारा मन्त्रभेद (या विश्वस्त मन्त्रभेद) में भिन्नता-साकार मन्त्रभेद और स्वदारा मन्त्रभेद इन दोनों में विश्वासी की गुप्त हकीकत का बाहर प्रकाशन करना यह अर्थ समान है। परन्तु गुप्त हकीकत को जानने में भेद है। साकार मन्त्रभेद में शरीर चेष्टा, प्रसंग तथा वातावरण इत्यादि द्वारा गुप्त बात हकीकत को जानते हैं। जबकि स्वदारा मन्त्रभेद में विश्वासी व्यक्ति ही उसको अपनी बात-हकीकत जणाता है।
* साकार मन्त्रभेद और रहस्याभ्याख्यान में भिन्नता-साकार मन्त्रभेद और रहस्याभ्याख्यान इन दोनों में गुप्त बात-हकीकत का प्रकाशन करना यह अर्थ समान है, किन्तु गुप्त बातहकीकत के प्रकाशन में भेद है। साकार मन्त्रभेद में व्यक्ति विश्वासी हो करके गुप्त बात-हकीकत का प्रकाशन करता है। जबकि रहस्याभ्याख्यान में सामान्य से (विश्वासी और अविश्वासी के भेद बिना बात-हकीकत का प्रकाशन करता है। तथा दूसरा भेद यह है कि साकार मन्त्रभेद में गुप्त बात-हकीकत जिसके पास से जानी हो, वह अन्य सम्बन्धी होती है। जबकि रहस्याभ्याख्यान में (पति-पत्नी, मित्र-मित्र इत्यादि) जिसके पास से जानी हो उसी से सम्बन्धित होती है।
जैसे-पति-पत्नी ने एकान्त में स्व सम्बन्धी बात की। अन्य दूसरे किसी ने यह बात जान ली और बाहर उस बात का प्रकाशन किया। यह प्रकाशन रहस्याभ्याख्यान है।
अब जो पति और पत्नी ने अन्य-दूसरे के सम्बन्ध में कोई बात की हो और अन्य कोई जान करके प्रकाशन करे तो वह साकार मन्त्रभेद गिना जाता है। अब तीसरा भेद यह है कि साकार मन्त्रभेद में गुप्त बात-हकीकत जिससे सम्बन्धित हो, उसको ही कहने की है। जबकि रहस्याभ्याख्यान में जिससे सम्बन्धित हो उसको वा अन्य दूसरे को भी कहने की होती है। साकार मन्त्रभेद तथा रहस्याभ्याख्यान में इन तीन दृष्टियों से भेद होता है ।। ७-२१ ।।
* तृतीयव्रतस्य पञ्चातिचाराः * ॐ मूलसूत्रम्स्तेनप्रयोग-तदाहृतादान-विरुद्धराज्यातिक्रम-हीनाधिकमानोन्मान
प्रतिरूपकव्यवहाराः ॥७-२२॥
* सुबोधिका टीका * स्तेनप्रयोगादि यानि सूत्राणि निर्दिष्टानि तानि अस्तेयाणुव्रतस्यातिचाराः। एते पञ्चास्तेयव्रतस्यातिचारा भवन्ति । तत्र स्तेनेषु हिरण्यादिप्रयोगः । स्तेनैराहतस्य द्रव्यस्य मुधक्रयेण वा ग्रहणं तदाहृतादानम् । विरुद्धराज्यातिक्रमश्चास्तेयव्रतस्यातिचारः ।