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सप्तमोऽध्यायः
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ना पाहिए। कदाचित अन्य उपाय
अविनयादिक गुनाह भूल करे नहीं। जो कोई अविनयादि गुनाह-भूल करे या पशु आदि योग्य रीत्या नहीं वर्ते और इस कारण से मारने की जरूरियात लगे तो भी गुस्सा करके क्रोध करके निर्दयतापूर्वक नहीं मारना चाहिए ।
कदाचित् बाहर से गुस्सा बताना भी पड़े- क्रोध करना भी पड़े तो भी अन्तःकरण हृदय में तो क्षमा ही धारण करनी चाहिए । यह वध है ।
(३) छविच्छेद - छवि यानी चमड़ी-चामड़ी। इसका छेदन करना यह छविछेद है। निष्कारण किसी भी प्राणी की चमड़ी-चामड़ी का छेद नहीं करना चाहिए ।
कदाचित् चोर इत्यादि की चमड़ी-चामड़ी के छेद करने की आवश्यकता लगे तो केवल भय बतलाने के पूरता ही करनी चाहिए। कारण कि, जो निर्दयतापूर्वक छविछेद करने में आ जाए तो वह 'छविछेद अतिचार' कहलाता है।
(४) प्रतिभारारोपण-बैल या मजदूर आदि पर शक्ति उपरान्त भार-बोझा लादना । यद्यपि श्रावक को गाड़ी चलाना आदि धन्धा-व्यापार नहीं करना चाहिए। कदाचित के अभाव में ऐसा धन्धा-व्यापार करना पड़े तो भी बैल आदि जितना भार-बोझा खशी-पानन्द से वहन कर सके उससे भी कुछ कम लादना चाहिए। तथा मजदूर इत्यादि से भार उठवाने का प्रसंग आ जाए तो भी मजदूर जितना भार-बोझा उठा सके तथा नीचे उतार सके, मूक सके उतना ही देना चाहिए। यह अतिभारारोपण अतिचार कहा जाता है।
(५) अन्न-पान निरोध-अन्न-पान अर्थात् भोजन-पानी समयसर नहीं देना। बैल इत्यादि को, गृह-घर के सदस्यों को तथा नौकर-मजदूर आदि को समयसर भोजन-पानी मिले इस तरह उनकी चिन्ता अवश्य रखनी चाहिए।
अविनीत ऐसे पुत्रादि को शिक्षा देने के लिए अन्न-पान का अर्थात् भोजन-पानी का निरोध करना पडे तो भी मर्यादा में करना चाहिए। * प्रश्न-व्रती-व्रतधारी श्रावक ने मात्र प्राणवियोगरूप हिंसा का नियम किया है, बन्ध
आदि का नियम नहीं किया है, तो फिर बन्ध आदि से दोष क्यों लगता है ? कारण कि, इसमें उसके नियम का भंग नहीं होता है। अब जो कहने में प्राता है कि, प्राणवियोग के नियम के साथ बन्ध आदि का भी नियम आ जाता है, तो बन्ध आदि से नियम का सर्वथा भंग होता है। तो फिर वह बन्ध आदि अतिचार कैसे गिना जाता है ? अतिचार नियम का अांशिक भंग है. सर्वथा
नहीं? उत्तर-यद्यपि प्रागवियोगरूप हिंसा का ही प्रत्याख्यान यानी पच्चक्खारण किया है, बन्ध प्रादि का नहीं, तो भी परमार्थ से प्रत्याख्यान के साथ बन्ध आदि का प्रत्याख्यान-पच्चक्खाण भी हो जाता है। कारण कि, बन्ध आदि हिंसा के कारण हैं। बिना नियम के साथ कारण का नियम भी पा जाता है। जैसे किसी ने 'पावाज नहीं करना' ऐसा कहा, तो फिर जिन-जिन कारणों से आवाज होती है, उन-उन कारणों का भी निषध हो जाता है। उसी प्रकार यहां पर भी हिंसा के प्रत्याख्यान-पच्चक्खारण से सभी ऐसे कारणों का प्रत्याख्यान-पच्चक्खाण भी हो जाता है।