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________________ २४ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ७८ पंच महाव्रतों के पालन के लिए काया के स्वरूप का चिन्तन अतिनावश्यक है। अन्यथा तो काया और अन्य उपकरण, उपकरण के बदले अधिकरण बन जाए तो साधना निष्फल जाती है ।। ७-७॥ * हिंसायाः स्वरूपम् के 卐 मूलसूत्रम्प्रमत्तयोगात् प्राणव्यपरोपणं हिंसा ॥ ७-८ ॥ * सुबोधिका टोका * असावधानता प्रमादः । यः कोऽपि जीवः प्रमादयुक्तो काय-वाङ्-मनोयोगः प्राणव्यपरोपणं करोति सा हिंसा। हिंसा मारणं प्राणातिपातः प्राणवध: शरीरान्तरसङ्क्रमणं प्राणव्यपरोपणं इति पर्यायाः। यदि कोऽपि प्रमादी भूत्वा हिसां करोति प्राणव्यपरोपणे प्रवर्तयति सः हिंसकः ॥ ७-८ ।। * सूत्रार्थ-प्रमत्तयोग से होने वाले प्राणों के वध को हिंसा कहते हैं। अर्थात्-प्रमाद के वश से किसी भी जीव के प्राणों का विनाश करना हिंसा' है ।। ७-८ ॥ ॐ विवेचनामृत अहिंसादिक पांच महाव्रतों का निरूपण पूर्व में कर पाए हैं। उन महाव्रतों का प्रतिपालन जब तक हम हिंसा के स्वरूप को वास्तविक रीति से नहीं समझ लें तब तक होना अति क्लिष्टकठिन है। इसलिए उन महाव्रतों के प्रतिपक्षी हिंसा तथा असत्यादि दोषों को क्रमशः नीचे प्रमाणे कहते हैं। प्रमाद के वश से प्राणों का वियोग हिंसा है। स्पर्शेन्द्रियादि पाँच इन्द्रियाँ, मनोबल, वचनबल, और कायबल ए तीन बल, श्वासोश्वास तथा आयुष्य ये दस प्रकार के द्रव्यप्राण हैं। इन प्राणों का वियोग करना वह हिंसा' कहलाती है। * हिंसा और भावहिंसा * हिंसा की व्याख्या कारण-कार्य रूप दोय अंश-विभाग से करते हैं। प्रमत्तयोग-राग द्वेष या असावधान प्रवृत्ति कारण है तथा हिंसा कार्य रूप है। सारांश यह है कि प्रमत्तयोग से होने वाले प्राणवध को हिंसा कहते हैं ।
SR No.022535
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2001
Total Pages268
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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