________________
( २० ) हर्ष की बात यह है कि प. पू. प्राचार्य देवेश सुशील सूरीश्वरजी म. सा. ने भी तत्त्वार्थ सूत्र पर सम्बन्ध कारिका व अन्तिम कारिका पर संक्षिप्त लघु टीका, सुबोधिका, हिन्दी भाषा में विवेचनामृत तथा हिन्दी में पद्यानुवाद की रचना की है। इस जिल्द में तत्त्वार्थ सूत्र के सप्तम एवं अष्टम अध्याय पर सुबोधिका टीका एवं हिन्दी विवेचनामृत प्रकाशित हो रहा है। परम पूज्य सुशील सूरीश्वरजी म. सा. द्वारा रचित सुबोधिका टीका एवं विवेचनामृत विद्वद्भोग्य एवं बालभोग्य बनेगा।
पाप श्री का प्रयास प्रशंसनीय व स्तुत्य है। क्योंकि वर्तमान में इस संसार में गुमराह हुए आत्मामों के लिए निश्चित रूप से यह कृति लाभदायी बनेगी।
सर्वज्ञ विभु श्री परमात्मा महावीर स्वामी द्वारा प्ररूपित ज्ञान अगर अाज तक विद्यमान रहा है तो उसका श्रेय आप जैसे प्राचार्यप्रवरश्री को देना चाहिए । आपने साहित्य-सर्जन एवं साहित्य-चर्चा में विशेष रूप से समय का सदुपयोग किया है । प्रतिगहन विषय होते हुए भी विवेचनामृत के माध्यम से आपश्री ने सरल विषय बनाकर भव्य प्रात्मानों पर एक विशेष उपकार किया है। ग्रन्थ समस्त जैन अनुयायियों को स्वीकृत है इसलिए आपश्री का चयन भी सर्वश्रेष्ठ है। प्रापश्री के द्वारा इस अवस्था में भी द्वात्रिंशत् द्वात्रिंशिका पर लेखन कार्य शुरू है । परमात्मा आपको सुन्दर स्वास्थ्य प्रदान करे व दीर्घायु दे ताकि आपके द्वारा सरल सुबोध साहित्य का सर्जन होता रहे। आपश्री के द्वारा प्रस्तुत यह टीका एवं हिन्दी अनुवाद तत्त्वजिज्ञासुओं के लिए निश्चित व निःशंक रूप से उपयोगी बनेगा।
परम पूज्य मधुरभाषी-कार्यदक्ष-शासनप्रभावक प्राचार्यदेव श्री जिनोत्तम सूरीश्वरजी म. सा. की प्रेरणा से यह ग्रन्थ शीघ्र प्रकाशित हुआ। तत्त्वजिज्ञासु सदैव आपके भी प्राभारी रहेंगे। आपश्री के पावन आदेश से इस प्रस्तावना-लेखन का कार्य मुझे प्राप्त हुमा, मैं आपका सदैव ऋणी रहूँगा।
अन्त में, यह प्रकाशित ग्रन्थ निःशंक भव्य जीवों को तत्त्वज्ञान की प्राप्ति कराये गा व परम्परा से मोक्ष की प्राप्ति करायेगा। यही शुभाभिलाषा ।
श्री नाकोड़ा तीर्थ (मेवानगर)
नरेन्द्र भाई कोरडीया
वरिष्ठ अध्यापक श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ जैन ज्ञानशाला