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स्याद्,
सर्वकल्याणपूर्णः श्रणिमादि - महासिद्धि,
( १०१ )
जरा
मृत्यु - विवर्जितः । लक्षजापेन चाप्नुयात् ॥ ३० ॥
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श्रर्थ-इसके एक लाख जाप से जपकर्त्ता जरा मृत्यु से रहित होता है, सब कल्याणों से परिपूर्ण होता है तथा प्रणिमादि जो महा प्रष्ट सिद्धियाँ हैं, उनको प्राप्त करता है ।। ३० ।।
प्रारणायाममनोमन्त्र योगादमृत
मात्मनिः ।
त्वामात्मानं शिवं ध्यात्वा, स्वामिन् सिद्धयन्ति जन्तवः ।। ३१ ॥
अर्थ - हे स्वामिन्! मनुष्य सिद्धि को प्राप्त करते हैं, कब ? जब वे शिवस्वरूप आपका ध्यान करें, मन्त्र द्वारा प्राणायाम करें और योग द्वारा अपनी प्रात्मा में मन्त्ररूप अमृत को प्राप्त करें ।। ३१ ।।
रिपुघ्नः
सर्वसौख्यदः ।
संस्मृतो जिनः ॥ ३२ ॥
हर्षदः कामदश्चेति,
पातु
वः
परमानन्द - लक्षणः
अर्थ - परमानन्द लक्षण से संस्मृत जिनेश्वरदेव हम सब की रक्षा करें, हमें हर्ष प्रदान करें, हमारी इच्छा की पूर्ति करें, शत्रु का नाशकर समस्त सुखों को देने की कृपा करें ।। ३२ ।।
तत्त्वरूप - मिदं स्तोत्रं, सर्वमंगलसिद्धिदम् ।
त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नित्यं नित्यं प्राप्नोति सः श्रियम् ॥ ३३ ॥
अर्थ- जो प्रतिदिन त्रिकाल तत्त्वरूप इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह मनुष्य समस्त मंगल सिद्धि तथा श्री को प्राप्त करता है ।। ३३ ।।
।। इति श्रीपार्श्वनाथस्य मन्त्राधिराजजिनस्तोत्रं समाप्तम् ॥
[ श्रीवीर संवत् २५२५, विक्रम सं. २०५५ वैशाख सुद - ३ ( प्रक्षयतृतीया दिन ) शनिवार । श्रोनाकोड़ाजी तीर्थ - राजस्थान ]
शुभं भवतु श्रीसंघस्य 5
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