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. प्राचीनश्रीपार्श्वनाथस्य मन्त्राधिराजस्तोत्रम् ॥
अर्थकर्ता-श्रोजैनधर्मदिवाकर - राजस्थानदोपक-शास्त्रविशारद - परमपूज्य-प्राचार्यप्रवर
श्रीमद् विजय सुशोलसूरीश्वरजी महाराज श्रीपार्श्वः पातु वो नित्यं, जिनः परमशंकरः । नाथः परमशक्तिश्च, शरण्यः सर्वकामदः ॥ १ ॥
अर्थ-श्रीपार्श्वनाथ प्रभु हम सब की हमेशा रक्षा करें, वे जिन हैं, सर्वोत्कृष्ट कल्याण करने वाले हैं, नाथ हैं, परमशक्ति हैं, शरणदाता हैं और सर्व कामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं ॥ १ ॥
सर्वविघ्नहरः स्वामी, सर्वसिद्धिप्रदायकः ।
सर्वसत्त्वहितो योगी, श्रीकरः परमार्थवः ॥ २ ॥
अर्थ-हे स्वामिन् ! आप समस्त विघ्नों को हरने वाले हैं, सर्वसिद्धिप्रदायक हैं, सब प्राणियों का हित करने वाले हैं, योगी हैं, लक्ष्मी प्रदान करने वाले हैं और परमार्थप्रदाता हैं ॥ २ ॥
देवदेवः स्वयंसिद्ध - श्चिदानन्दमयः शिवः ।
परमात्मा परब्रह्म, परमः परमेश्वरः ॥ ३ ॥ अर्थ-पाप देवों के देव हैं, स्वयंसिद्ध, चिदानन्दमय, शिव, परमात्मा, परब्रह्म, और परम (उत्कृष्ट) परमेश्वर हैं ।। ३ ।।
जगन्नाथः सुरज्येष्ठो, भूतेशः पुरुषोत्तमः ।
सुरेन्द्रो नित्यधर्मश्च, श्रीनिवासः शुभार्गवः ॥ ४ ॥
अर्थ-पाप विश्व के नाथ, सुरज्येष्ठ, भूतेश, पुरुषोत्तम, सुरेन्द्र, नित्यधर्म, श्रीनिवास तथा शुभार्णव हैं ।। ४ ।।
सर्वज्ञः सर्वदेवेशः, सर्ववः सर्वगोत्तमः । सर्वात्मा सर्वदर्शी च, सर्वव्यापी जगद्गुरुः ॥ ५ ॥
अर्थ-पाप सर्वज्ञ हैं, समस्त देवों के स्वामी हैं, सब कुछ देने वाले हैं, सब कुछ जानने में उत्तम हैं, सर्वात्मा हैं, सर्वव्यापी हैं, सर्वदर्शी हैं और जगद्गुरु हैं ॥ ५ ॥