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________________ ( ६३ ) - मेरी जीवन नैया टूटी , मेरी जीवन नैया टूटी , जिनवर ! पार लगा देना । प्रज्ञानतिमिर में फंसा हुआ मैं , निशदिन टक्कर खाता हूँ। ज्ञानामृत की कुछ बूंदें तो , मुझ पर भी बरसा देना । मेरी जीवन नैया टूटी० ॥ कर्म - पीन मतिहीन दीन मैं , शरण तुम्हारी पाया हूँ । भव - विषयों में भटका - अटका , बहुत ठोकरें खाया हूँ । सादर विनती तव चरणों में , पाशावन्ध मिटा देना । ज्ञानामृत की कुछ बूंदें तो , मुझ पर भी बरसा देना । मेरी जीवन नैया टूटी० ॥ अशरण शरण तुम्हीं हो दाता , शरण तुम्हारी आया हूँ । चरण - तरण भवसिन्धु बिन्दुसम. मुझको पार लगा देना । अटका भटका बहुविध जग में , कर्म शूल हैं बिंधे हुए । जिनवर ! एक सहारा तेरा , मुक्ति सुपथ दरसा देना । मेरी जीवन नैया टूटी० ॥
SR No.022535
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2001
Total Pages268
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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