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________________ विषयः-तत्त्वार्थ के वर्ण्य विषय को श्री उमास्वातिजी म. सा. ने दश अध्यायों में इस प्रकार से विभाजित किया है । प्रथम अध्याय में ज्ञान की, द्वितीय से पंचम तक इन चार अध्यायों में ज्ञेय की, छठे से दसवें तक इन पांच अध्यायों में चारित्र की मीमांसा की गई है। यहाँ उक्त तीनों मीमांसानों की सारभूत बातें दे रहे हैं ज्ञानमीमांसाः-१. नय और प्रमाण से ज्ञान का विभाजन । २. पाँच ज्ञान का प्रत्यक्ष व परोक्ष दो प्रमाणों में विभाजन । ३. मतिज्ञान की उत्पत्ति के साधन । ४. श्रुतज्ञान का वर्णन । ५. अवधि आदि तीन दिव्य प्रत्यक्ष और उनके भेद, प्रभेदों का वर्णन । ६. पाँचों ज्ञानों का तारतम्य बतलाते हुए उनका विशेष वर्णन । ७. ज्ञान की यथार्थता व अयथार्थता के कारण। ८. नय के भेद-प्रभेद । ज्ञेयमीमांसाः-ज्ञेयमीमांसा में जगत् के मूलभूत जीव और अजीव इन दो तत्त्वों का विशेष वर्णन है। जिसमें जीव तत्त्व की चर्चा द्वितीय से चतुर्थ तक तीन प्रध्यायों में है। १. जिसमें जीव तत्त्व का सामान्य स्वरूप द्वितीय अध्याय में बताया है । २. संसारी जीवों के अनेक भेद-प्रभेद। ३. एवं उनसे सम्बन्धित इन्द्रिय, जन्म, मृत्यु शरीर, आयुष्य का निर्देश है। ४. तृतीय अध्याय में अधोलोकवासी नारकों, मध्य लोकवासी मनुष्यों व तिर्यंचों का वर्णन होने से नरकभूमि व मनुष्य लोक का सम्पूर्ण भूगोल पा जाता है। ५. चतुर्थ अध्याय में देवसृष्टि का वर्णन होने से खगोल का सम्पूर्ण वर्णन है। ६. पंचम अध्याय में प्रत्येक द्रव्य के गुणधर्म का सामान्य स्वरूप बताकर साधर्म्य-वैधर्म्य द्वारा द्रव्य मात्र की विस्तृत चर्चा की गई है । चारित्रमीमांसाः-जीवन में कौनसी प्रवृत्तियाँ हेय हैं, हेय प्रवृत्ति का सेवन करने से जीवन का क्या परिणाम होता है-हेय प्रवृत्ति का त्याग किन-किन उपायों से संभव है व कौनसी प्रवृत्ति अंगीकार करने से उनका जीवन में क्रमशः और अन्त में क्या परिणाम प्राता है, यह सब छठे से दसवें अध्याय तक की चारित्र मीमांसा में प्राता है । अर्थात् छठे अध्याय में प्रास्रव व उनके भेद-प्रभेद, सातवें अध्याय में व्रत, व्रती का स्वरूप-हिंसा प्रादि दोषों का निरूपण व दान का स्वरूप; पाठवें अध्याय में कर्मबंधकर्म प्रकृति का स्वरूप, नौवें अध्याय में संवर-निर्जरा के भेद-प्रभेद का स्वरूप व दसवें अध्याय में केवलज्ञान के हेतु व मोक्ष का स्वरूप बताया गया है।
SR No.022535
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2001
Total Pages268
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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