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(१७) पण्डित खूबचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री ने सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्र का 'हिन्दी भाषानुवाद' किया है ।
(१८) पण्डित श्री सुखलालजी ने श्रीतत्त्वार्थसूत्र का गुर्जर भाषा में विवेचन किया है ।
( ११ ) पण्डित श्री प्रभुदास बेचरदास ने भी तत्त्वार्थसूत्र पर गुर्जर भाषा में विवेचन किया है ।
(२०) श्री मेघराज मुणोत ने श्रीतत्त्वार्थसूत्र का हिन्दी भाषा में अनुवाद किया है ।
जैसे श्री जैन श्वेताम्बर श्राम्नाय में 'श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्र' नामक ग्रन्थ विशेष रूप में प्रचलित है, वैसे ही श्री दिगम्बर श्राम्नाय में भी यह ग्रन्थ मौलिक रूपे प्रतिप्रचलित है । इस महान् ग्रन्थ पर दिगम्बर श्राचार्य पूज्यपाद ने सर्वार्थसिद्धि, प्राचार्य अकलंकदेव ने राजवात्तिक टीका तथा आचार्य विद्यानन्दी ने श्लोकवात्तिक टीका की रचना की है । इस ग्रन्थ पर एक श्रुतसागरी टीका भी है । इस प्रकार इस ग्रन्थ पर प्राज संस्कृत भाषा में अनेक टीकाएँ तथा हिन्दी व गुजराती भाषा में अनेक अनुवाद विवेचनादि उपलब्ध हैं । इस प्रकार इस ग्रन्थ की महत्ता निर्विवाद है ।
* प्रस्तुत प्रकाशन का प्रसंग *
उत्तर गुजरात के सुप्रसिद्ध श्री शंखेश्वर महातीर्थ के समीपवर्ती राधनपुर नगर में विक्रम संवत् १९६८ की साल में तपोगच्छाधिपति शासनसम्राट् - परमगुरुदेव- परमपूज्य श्राचार्य महाराजाधिराज श्रीमद् विजय नेमिसूरीश्वरजी म. सा. के दिव्यपट्टालंकारसाहित्यसम्राट् गुरुदेव पूज्यपाद प्राचार्यदेव श्रीमद् विजय लावण्यसूरीश्वरजी म. सा. का श्रीसंघ की साग्रह विनंति से सागरगच्छ के जैन उपाश्रय में चातुर्मास था । उस चातुर्मास में पूज्यपाद प्राचार्यदेव के पास पूज्य गुरुदेव श्री दक्षविजयजी महाराज ( वर्तमान में पू. प्रा. श्रीमद् विजय दक्षसूरीश्वरजी महाराज ), मैं सुशील विजय