________________
(८) पू. शासनसम्राट् श्रीमद् विजय नेमिसूरीश्वरजी म. सा. के दिव्य पट्टालंकार व्याकरणवाचस्पति-शास्त्रविशारद-कविरत्न-साहित्यसम्राट् पूज्य प्राचार्यवर्य श्रीमद लावण्यसूरीश्वरजी महाराज ने श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्र के 'उत्पाद-व्यय-ध्रौव्ययुक्त सत्' (२६), 'तद्भावाव्ययं नित्यम्' (३०), 'अर्पितानर्पित सिद्धेः' (३१) इन तीन सूत्रों पर 'तत्त्वार्थ त्रिसूत्री प्रकाशिका' नाम की विशद टीका ४२०० श्लोक प्रमाण रची है।
__(8) सम्बन्धकारिका और अन्तिमकारिका पर श्री सिद्धसेन गणि कृत टीका है।
(१०) सम्बन्धकारिका पर प्राचार्य श्री देवगुप्तसूरि कृत टीका है। * (११) प्राचार्य श्री मलयगिरिसूरि म. ने भी श्रीतत्त्वार्थसूत्र पर टीका की है ।
(१२) मैंने [मा. श्री विजय सुशीलसूरि ने] भी तत्त्वार्थाधिगमसूत्र पर तथा उसकी 'सम्बन्धकारिका' और 'अन्तिमकारिका' पर संक्षिप्त लघु टीका सुबोधिका, हिन्दी भाषा में विवेचनाऽमृत तथा हिन्दी में पद्यानुवाद की रचना की है।
(१३) पू. शासनसम्राट् श्रीमद् विजय नेमिसूरीश्वरजी म. सा. के पट्टधर शास्त्रविशारद-कविरत्न पूज्य प्राचार्य श्रीमद् विजयामृतसूरीश्वरजी म. सा. के प्रधान पट्टधरद्रव्यानुयोगज्ञाता पू. प्राचार्य श्रीमद् विजय रामसूरीश्वरजी म. श्री ने इस तत्त्वार्थाधिगमसूत्र का, सम्बन्धकारिका का तथा अन्तिमकारिका का गुर्जर भाषा में पद्यानुवाद किया है।
(१४) तीर्थप्रभावक-स्वर्गीय प्राचार्य श्रीमद् विजय विक्रमसूरीश्वरजी म. श्री ने गुजराती विवरण लिखा है ।
(१५) श्री तत्त्वार्थ सूत्र पर श्री यशोविजयजी गणि महाराज का गुजराती टबा है।
(१६) कर्मसाहित्यनिष्णात प्राचार्य श्रीमद् विजय प्रेमसूरीश्वरजी म. के समुदाय के मुनिराज श्री राजशेखरविजयजी ने श्रीतत्त्वार्थसूत्र का गुर्जर भाषा में विवेचन किया है।