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________________ ३६ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ८।१२ उत्तर-गति प्रर्थात् चाल=पाकाश में (खाली जगह में) गति होने से 'विहायसि'गतिःअर्थात् आकाश में जो गति, वह विहायोगति। इस तरह भी अर्थ घटने से अन्य कोई शब्द नहीं जोड़ते, विहायस् शब्द जोड़ा है। * पाठ प्रत्येक प्रकृतियाँ * .... पाठ प्रत्येक प्रकृतियों के नाम नीचे प्रमाणे हैं (१) परघात, (२) उच्छ्वास, (३) प्रातप, (४) उद्योत, (५) अगुरुलघु, (६) तीर्थकर, (७) निर्माण, और (८) उपघात । * परघात-पराघात-जिससे जीव-प्रात्मा अन्य से पराभव नहीं पावे, अथवा अपने से अधिक बलवान का भी स्वयं-पोते पराभव कर सके, वह परघातपराघात नामकर्म है। * उच्छवास-जिससे जीव-आत्मा श्वासोश्वास की क्रिया कर सके, वह उच्छवास नामकर्म है। * प्रातप-जिससे देह-शरीर में प्रातप का सामर्थ्य प्राप्त हो वह प्रातपनामकर्म है। जैसे-सूर्य के विमान में रहे हुए एकेन्द्रिय जीवों को प्रातपनामकर्म का उदय होता है। उनका देह-शरीर शीत स्पर्श वाला होता है, तो भी उनके देह-शरीर में से निकलता प्रकाश उष्ण होता है। विशेष-आकाश में अपने को दिखाई दे रहे सूर्य-चन्द्र, देवों के रहने के विमान हैं। वे असंख्य पृथ्वीकाय जीवों के देह-शरीर के समूहरूप हैं। सूर्य विमान के पृथ्वीकाय जीवों को 'प्रातपनामकर्म' का उदय है, तथा चन्द्र विमान के पृथ्वीकाय जीवों को 'उद्योतनामकर्म' का उदय है। * उद्योत-जिससे जीव-मात्मा का देह-शरीर अनुष्ण प्रकाश रूप उद्योत करता है, वह 'उद्योतनामकर्म' है। पतंगिया आदि जीवों को इस कर्म का उदय होता है । ___ * अगुरुलघु-जिससे देह-शरीर गुरु अर्थात् (भारी) नहीं तथा लघु (अर्थात् हल्की) भी नहीं, किन्तु जो अगुरुलघु बनता है, वह 'प्रगुरुलघुनामकर्म' है । * तीर्थकर-जिससे जीव-प्रात्मा त्रिभुवन पूज्य बने और धर्मरूपतीर्थ को करे (अर्थात्प्रवर्तावे) वह 'तीर्थकरनामकर्म' है। * निर्माण-जिससे देह-शरीर के प्रत्येक अंग की तथा उपांग की अपने-अपने नियत स्थान में रचना हो, वह 'निर्माणनामकर्म' है । * उपघात-जिससे देह-शरीर के अंगों और उपांगों का उपघात (अर्थात् खंडन) हो, वह 'उपघातनामकर्म' है। १. इस प्रकार का यह विग्रह श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्र के भाष्य की वृत्ति-टीका में है। कर्मग्रन्थ में तो 'विहायसा गतिः विहायोगतिः' ऐसा विग्रह किया है ।
SR No.022535
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2001
Total Pages268
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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