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श्री तत्वार्थाधिगमसूत्रे
इस अवस्था में स्वाभाविक बल की अपेक्षा अनेक गुरणा बल प्रगट होता है ।
विशेष
(१) जिससे चक्षुद्वारा रूपका (सामान्य) ज्ञान न कर सके, वह 'चक्षुदर्शनावरण' है ।
GIS
(२) अचक्षु शब्द से चक्षु बिना चार इन्द्रियाँ तथा मन ग्रहण करने में आते हैं । जिससे स्पर्शेन्द्रिय आदि चार इन्द्रियाँ तथा मन द्वारा अपने-अपने विषय का ( सामान्य ) ज्ञान न हो सके, वह 'प्रचक्षुदर्शनावरण' है ।
(३) जिस कर्म के उदय से अवधिदर्शन रूप (सामान्य) ज्ञान न हो सके, वह 'अवधिदर्शनावरण' है ।
( ४ ) जिस कर्म के उदय से केवलदर्शन रूप (सामान्य) ज्ञान न हो सके, वह 'केवलदर्शनावरण' है ।
पूर्व में इस अध्याय के पाँचवें सूत्र में कहा है कि सामान्य और विशेष इम दो प्रकार से बोध होता है । उसमें सामान्य बोध वह दर्शन है तथा विशेष बोध वह ज्ञान है ।
ज्ञान विषय में भी प्रथम अध्याय में कहा है कि मतिज्ञान में इन्द्रियों की और मन की श्रावश्यकता जरूरी है । पाँच इन्द्रियों तथा मन द्वारा होता हुआ मतिज्ञान सामान्य और विशेष इम उभयरूप है ।
पाँच इन्द्रियों तथा मन की सहायता से प्रथम सामान्य मतिज्ञान होता है, बाद में विशेष मतिज्ञान होता है । उसमें भी चक्षुइन्द्रिय से रूप का सामान्य जो मतिज्ञान होता वही चक्षुदर्शन, तथा शेष चार इन्द्रियों और मन द्वारा तद् तद् विषय का जो सामान्य मतिज्ञान होता है वही चक्षुदर्शन है।
इस तरह अवधिज्ञान तथा केवलज्ञान भी सामान्य और विशेष इम उभयरूप हैं । अवधि लब्धि से जो सामान्य बोध होता है, वह 'अवधिदर्शन' है, तथा विशेष बोध होता है वह 'अवधिज्ञान' है ।
केवलब्धि से जो सामान्य बोध होता है, वह 'केवलदर्शन' है, तथा विशेष जो बोध होता है, वह 'केवलज्ञान' है ।
* प्रश्न – मतिज्ञान आदि की भाँति मनः पर्यवज्ञान भी सामान्य और विशेष इम उभयरूप क्यों नहीं है ?
उत्तर - जिससे मन की पर्यायों को जान सके वह मनः पर्यवज्ञान है । मन के पर्याय विशेष रूप हैं। इससे इस ज्ञान से पहले से ही विशेष बोध होता है। इसलिए मनः पर्यवज्ञान विशेष क्षयोपशम से होता होने से चक्षुदर्शन आदि की भाँति मनः पर्यवदर्शन नहीं है ।