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________________ ८।४ ] अष्टमोऽध्यायः विशेष-पुद्गल की वर्गणायें अनेक प्रकार की हैं और मनन्तानन्त रूप हैं। उसमें से जो वर्गणा कर्म रूप परिणमने योग्य है उसी को जीव ग्रहण करके अपने प्रदेशों के साथ विशिष्ट रूप में जोड़ता है, जिसका विशेष रूप से वर्णन आगे आने वाले सूत्र पच्चीस में है । __ जीव-मात्मा स्वभाव से अमूर्त है, तो भी अनादिकालिक कर्म सम्बन्ध से कर्म के सहचारी होने के कारण वह मूत्तिवान दिखाई देता है, तथा कर्मपुद्गलों को ग्रहण करता है। जिस तरह दीपक-दीवा बत्ती द्वारा तेल ग्रहण करके अपनी उष्णता से ज्वाला रूप में परिणमित होता है, इसी तरह जीव-आत्मा काषायिक विकारों से कर्म योग्य पुद्गलों को ग्रहण करके भावकर्म रूप से परिणमन करता है। तथा जीव-प्रात्मप्रदेशों के साथ कर्म पुद्गलों का सम्बन्ध ही बन्ध कहलाता है। बन्ध के लिए मिथ्यात्वादि अनेक निमित्त होते हुए भी उनमें कषाय की मुख्यता-प्रधानता सूचित करने के लिए ही 'सकषायत्वाद् जीवः' इत्यादि कहा है। सकर्मी अर्थात् कर्मयुक्त जीव जो पुद्गल ग्रहण करता है, उसी को बन्ध कहते हैं ।। २-३ ॥ * बन्धस्य भेदाः * 卐 मूलसूत्रम्प्रकृति-स्थित्यनुभाव-प्रदेशास्तद्विधयः ॥८-४ ॥ * सुबोधिका टीका * प्रकृतिबन्धः, स्थितिबन्धः, रसबन्धः, प्रदेशबन्धः, इति चत्वारो भेदाः बन्धस्य सन्ति ।। ८-४ ॥ * सूत्रार्थ-प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश, बन्ध के ये चार प्रकार हैं ।। ८-४ ॥ 5 विवेचनामृत ॥ बन्ध के प्रकृति, स्थिति, अनुभाव (रस) और प्रदेश ये चार प्रकार हैं। जब कर्म के अणुओं का जीव-आत्मा के साथ सम्बन्ध होता है तब स्वभाव, स्थिति, फल देने की शक्ति और कर्म के अणुओं की वहेंचणी ये चार कार्य होते हैं। इन चार को क्रमश: प्रकृतिबन्ध, स्थितिबन्ध, रसबन्ध और प्रदेशबन्ध कहा जाता है। विशेष स्पष्टीकरण-जीव-आत्मा द्वारा ग्रहण किये हुए कार्मण वर्गणा रूप पुद्गल कर्म रूप परिणाम को प्राप्त होते समम इन चारों प्रकृति आदि अंशों में विभाजित होते हैं। ये अंश ही बन्धभेद कहलाते हैं। जैसे-गाय, भैंस, बकरी आदि का खाया हुमा तृण-घास रक्त, मेदा, मांस तथा दुग्ध-दूधादि रूप में परिणमित होता है। .
SR No.022535
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2001
Total Pages268
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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