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________________ हिन्दी पद्यानुवाद ] सप्तमोऽध्यायः [ ६३ * संलेखना और दान का स्वरूप * 卐 मूलसूत्रम् जीवितमरणाशंसा-मित्रानुराग-सुखानुबन्ध-निदानकरणानि ॥ ७-३२ ॥ अनुग्रहार्थ स्वस्यातिसर्गो दानम् ॥ ७-३३ ॥ विधि-द्रव्य-दातृ-पात्रविशेषात् तद्विशेषः ॥ ७-३४ ॥ * हिन्दी पद्यानुवाद जीवितेच्छा मृत्यु इच्छा, मित्र की मन-मोहता। सुख विषयी अनुबन्ध इच्छे, फिर करे निदानता ।। संलेखना के पाँच दोष, छोड़ दो शुभ वासना । विरति संगे धर्मरंगे, होती सुशोभित भावना ।। ७-२४ ।। परहित उपकार अर्थे, स्ववस्तु को परिहरे । दानधर्म होता सुशोभित, मूर्छना दूरे करे ।। विधि पुनः द्रव्य दाता, पात्रता चौथी कही। दान में ये हो समुद्भव, विशेषता मन गहगही ।। ७-२५ ।। तत्त्वार्थाधिगमे सूत्रे, हिन्दीपद्यानुवादके । पूर्णः सप्तमोऽध्यायः, व्रतस्वरूपो बोधकः ।। ॥ इति श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्र के सप्तमाध्याय का हिन्दीपद्यानुवाद पूर्ण हुआ ॥
SR No.022535
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2001
Total Pages268
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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