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श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
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* एकादशमोपभोग-परिभोगपरिमाण-व्रतानामतिचाराः*
卐 मूलसूत्रम्सचित्तसंबद्ध-संमिश्रा-ऽभिषव-दुष्पक्वाहाराः ॥ ७-३० ॥ ..
* सुबोषिका टीका * प्रमादयोगेन त्यक्तानां परिमितानां वा पदार्थानां ग्रहणं भक्षणं वा उपभोगपरिभोगव्रतस्यातिचाराः भवन्ति । यथानुक्रमेण सचित्ताहारः सचित्त-सबन्धाहारः सचित्त-संमिश्राहारः अभिषवाहारः दुष्पक्वाहारश्च हरितकायवनस्पतीनां भक्षणञ्च त्यक्तभक्षणस्य प्रमादेनाज्ञानेन भक्षणं सचित्ताहारातिचारः सचित्तसम्बन्धं यत्र तस्यापि भक्षणम् । यथा कदलीदलो परिभक्षणं वा कदलीपत्राच्छादितवस्तुभक्षणम् सचित्तसम्बन्धाहारः नामकोऽतिचारः । एवञ्च सचित्तसंमिश्राहारः, अभिषवाहारः दुष्पक्वाहारादि पञ्चातिचाराः भवन्ति ।। ७-३० ।।
* सूत्रार्थ-सचित्त माहार, सचित्तसम्बद्ध आहार, सचित्त मिश्राहार, अभिषवगरिष्ठ और रसयुक्त पदार्थ का आहार तथा दुष्पक्व-योग्य रीति से नहीं पके हुए पदार्थ का आहार ये पाँच उपभोग-परिभोग परिमाण व्रत के प्रतिचार हैं ।। ७-३० ॥
विवेचनामृत (१) सचित्त पाहार, (२) सचित्त सम्बद्ध आहार, (३) सचित्तसंमिश्र आहार, (४) अभिषव आहार तथा (५) दुष्पक्व आहार। ये पाँच उपभोग-परिभोग परिमाणवत के अतिचार हैं। इनका क्रमश: संक्षिप्त वर्णन नीचे प्रमाणे है
(१) सचित्त प्राहार-अयोग्य वस्तु का आहार करना। अर्थात् – सचित्त (दाडिम इत्यादि) फलादि का उपयोग करना। यहाँ पर सचित्त का त्याग होने से अनाभोग' आदि से सचित्त आहार जो वापरे तो अतिचार लगे, किन्तु जो जानबूझ कर भी वापरे तो इस व्रत का भंग होता है।
(२) सचित्त संबद्ध प्राहार-सचित्त से सम्बन्ध रखने वाली वस्तु का प्राहार करना। अर्थात्-ठलिया, गुठली इत्यादि सचित्त बीज समेत बोर तथा केरी प्रमुख का आहार करना (वापरना)। यहां पर ठलिय, तथा गुठलो आदि छोड़ देते हैं। मुख में से बाहर निकाल देते हैं । केवल फल का अचित्त गर्भ-सार वापरते हैं। इसलिए इस दृष्टि से व्रत का भंग नहीं होता, किन्तु
१. 'सचित्त का त्याग है' इस तरह ख्याल में नहीं रहना या यह वस्तु सचित्त है इस तरह ख्याल में
नहीं रखना।