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________________ ६८ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ७२६ जायेंगे तो भी नियम का भंग होगा। ऐसा विचार करके ५० मील प्रागे नहीं जाय तो भी अतिचार लगता है। क्योंकि, किसी भी नियम का बराबर पालन नियम को याद रखने से होता है। इसलिए नियम को भूल जाना यह अतिचार है ।। * प्रश्न-जो नियम का भूल जाना है वह अतिचार है, तो स्मृत्यन्तर्धान अतिचार समस्त व्रतों को लागू पड़ता है। फिर उसकी सर्व व्रतों में गिनती क्यों नहीं करते, यहाँ ही क्यों की? उत्तर-प्रत्येक व्रत के पांच प्रतिचार गिनने का होने से पाँच की संख्या पूर्ण करने के लिए यहाँ पर उसकी गिनती करने में पाई है। शेष ये अतिचार समस्त व्रतों के लिए हैं ।। (७-२५) 2 सप्तमदेशावकाशिकवतस्य पञ्चातिचाराः के 卐 मूलसूत्रम्प्रानयन-प्रेष्यप्रयोग-शब्द-रूपानुपात-पुद्गलक्षेपाः ॥ ७-२६ ॥ * सुबोधिका टीका * निश्चितसीमानन्तरवस्तुयाचना प्रानयननामकोऽतिचारः । सेवकः सीमोल्लंघनं कृत्वा कार्यनिष्पादनं प्रेष्यप्रयोगनामकोऽतिचारः । एवमेव शब्दानुपातः, रूपानुपातः, पुद्गलक्षेपः इत्येते पञ्चदेशव्रतस्यातिचारा भवन्ति ।। ७-२६ ।। * सूत्रार्थ-पानयनप्रयोग, प्रेष्यप्रयोग, शब्दानुपात, रूपानुपात और पुद्गलक्षेप । ये पाँच भतिचार देशव्रत के हैं ।। ७-२६ ।। ॥ विवेचनामृत ॥ (१) प्रानयन-नियत सीमा के बाहर की चीज-वस्तु को स्वयमेव नहीं लाकर किसी अन्य व्यक्ति द्वारा मंगा लेना। अर्थात्-धारे हुए परिमारण से अधिक देश में रही हुई चीज-वस्तुओं को (कागज, चिट्ठी, तार, टेलीफोन आदि के द्वारा) अन्य-दूसरे व्यक्ति के पास से मंगवा लेना। इस अतिचार को 'मानयनप्रयोग' भी कहते हैं । १. 'अविस्मृतिमूलं धर्मानुष्ठानम्'-नियम की स्मृति नियम पालन का मूल है। २. श्री धर्मरत्न प्रकरण इत्यादि ग्रन्थों में स्मृत्यन्तर्धान अतिचार का अर्थ इस तरह से है ५० योजन धारे हैं कि १०० योजन ? ऐसे संशय में ५० योजन से दूर नहीं जाना चाहिए। जो ५० योजन से मागे जाता है तो अतिचार लगता है। ३. अयं चातिचारः सर्ववतसाधारणोऽपि पञ्चसंख्यापूरणार्थमत्रोपात्तः । [श्रीश्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रास्यार्थदीपिका टीका]
SR No.022535
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2001
Total Pages268
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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