SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५।२० 1 पञ्चमोऽध्यायः * प्रश्न - भाषा - शब्द को प्ररूपी मानने में कौन-कौनसे विरोध उत्पन्न होते हैं ? उत्तर - निम्नलिखित विरोध क्रमशः नीचे प्रमाणे हैं (१) जो अरूपी वस्तु-पदार्थ हैं, उसे रूपी वस्तु-पदार्थ की सहायता से नहीं जान सकते हैं जबकि शब्द रूपी श्रोत्रेन्द्रिय की सहायता से मदद से जाने जा सकते हैं । [ ३१ (२) अरूपी वस्तु - पदार्थ को रूपी वस्तु-पदार्थ प्रेरणा नहीं कर सकता, जबकि भाषा-शब्द को रूपी पवन-वायु प्रेरणा कर सकती है। इसलिए ही अपन पवन-वायु अनुकूल हो तो दूर के भी शब्दों को सुन सकते हैं, और पवन-वायु प्रतिकूल हो तो समीप के भी शब्द सुनाई नहीं देते । (३) अरूपी वस्तु - पदार्थ को नहीं पकड़ा जा सकता किन्तु शब्दों को तो पकड़ सकते हैंसंस्कारित कर सकते हैं, रेडियो, ग्रामोफोन, टेपरेकार्डर इत्यादि में पकड़ सकते हैं- संस्कारित कर सकते हैं । * मन भी पुद्गल के परिणाम रूप होने से पौद्गलिक है । जब जीव आत्मा विचार करता है तब प्रथम आकाश में रहे हुए मनोवर्गरणा के पुद्गलों को ग्रहण करता है । पश्चाद् वे पुद्गल मन रूप में परिणमते हैं। बाद में उन्हीं पुद्गलों को छोड़ देते हैं । यहाँ पर मन रूप में परिमित पुद्गलों को छोड़ देना यह विचारणीय है । इस तरह मन रूप में परिगमित पुद्गल ही मन है । मन के दो भेद हैं- द्रव्यमन और भावमन । भावमन के भी दो भेद हैं- लब्धिभावमन, उपयोग भावमन । उसमें जो विचार करने की शक्ति वह लब्धिरूप भावमन है, तथा विचार ही उपयोगरूप भावमन है एवं विचार करने में जो सहायक मन रूप में परिणमित मनोवर्गरणा के पुद्गल ही द्रव्यमन है । इसीलिए तो यहाँ पर द्रव्यमन को ही पौद्गलिक कहने में आया है । भावमन भी तो उपचार से ही पौद्गलिक कहने में आया है । (४) प्राणापान - ( यानी श्वासोच्छ्वास ) जीव आत्मा जब श्वासोच्छ्वास लेता है तब प्रथम श्वासोच्छ्वास वर्गरणा के पुद्गलों को ग्रहण करता है । पश्चाद् उन्हें श्वासोच्छ्वास रूप में परिमाता है । बाद में श्वासोच्छ्वास रूप में परिणमित पुद्गलों को छोड़ देते हैं । श्वासोच्छ्वास रूप में परिणत पुद्गलों को छोड़ देना यही प्राणापान की यानी श्वासोच्छ्वास की क्रिया करनी । इसलिए श्वासोच्छ्वास भी पुद्गल के परिणामरूप है । हस्तादिक से वदन - मुख और नासिका नाक को बन्द करने से श्वासोच्छ्वास का प्रतिघात हो जाने से तथा कण्ठ में कफ भर जाने से अभिभव होने से श्वासोच्छ्वास पुद्गल द्रव्य है । यही निश्चित सिद्ध होता है । (१) सुख - इष्ट स्त्री, इष्ट भोजन तथा इष्ट वस्त्रादिक द्वारा उत्पन्न हुई प्रसन्नता प्रानन्द इत्यादि सातावेदनीय कर्म के उदय से प्राप्त होता है। इस सुख में बाह्य तथा अभ्यन्तर ये दोनों
SR No.022534
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy