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(३) श्रीतत्त्वार्थ भाष्य पर १४४४ ग्रन्थों के प्रणेता आचार्य श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी महाराज कृत लघु टीका ११००० श्लोक प्रमारण की है । उन्होंने यह टीका साढ़े पाँच ( ५ 11 ) अध्याय तक की है । शेष टीका श्राचार्य श्री यशोभद्रसूरिजी ने पूर्ण की है ।
( ४ ) इस ग्रन्थ पर श्री चिरन्तन नाम
लिखा है ।
मुनिराज ने 'तत्त्वार्थ टिप्पण'
( ५ ) इस ग्रन्थ के प्रथम अध्याय पर न्यायविशारद न्यायाचार्य महोपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज कृत भाष्यतर्कानुसारिणी 'टीका' है ।
(६) श्रागमोद्धारक श्री सागरानन्दसूरीश्वरजी म. श्री ने 'तत्त्वार्थकर्तृ त्वतन्मतनिर्णय' नाम का ग्रन्थ लिखा है ।
(७) भाष्यतर्कानुसारिणी टीका पर पू. शासनसम्राट् श्रीमद् विजय नेमिसूरीश्वरजी म. सा. के प्रधान पट्टधर न्यायवाचस्पति शास्त्रविशारद पू. प्राचार्यप्रवर श्रीमद् विजय दर्शन सूरीश्वरजी महाराज ने श्रीतत्त्वार्थसूत्र पर के विवरण को समझाने के लिये 'गूढार्थदीपिका' नाम की विशद वृत्ति रची है । सिद्धान्तवाचस्पति-न्यायविशारद पू. प्रा. श्रीमद् विजयोदयसूरीश्वरजी म. सा. ने भी वृत्ति रची है ।
(८) पू. शासनसम्राट् श्रीमद् विजय नेमिसूरीश्वरजी म. सा. के दिव्य पट्टालंकार व्याकरणवाचस्पति-शास्त्रविशारद - कविरत्न- साहित्यसम्राट् पूज्य आचार्यवर्य श्रीमद् लावण्यसूरीश्वरजी महाराज ने श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्र के 'उत्पाद व्यय- ध्रौव्ययुक्तं सत्' ( २ ), ' तद्भावाव्ययं नित्यम्' (३०), 'अर्पितानर्पितसिद्धेः' (३१) इन तीन सूत्रों पर 'तत्त्वार्थ त्रिसूत्री प्रकाशिका' नाम की विशद टीका ४२०० श्लोक प्रमाण रची है ।
( ६ ) सम्बन्धकारिका और अन्तिमकारिका पर श्री सिद्धसेन गरिण कृत टीका है ।
(१०) सम्बन्धकारिका पर प्राचार्य श्री देवगुप्तसूरि कृत टीका है ।
(११) प्राचार्य श्री मलयगिरिसूरि म. ने भी श्रीतत्त्वार्थसूत्र पर टीका की है । (१२) मैंने [ मा. श्री विजय सुशोलसूरि ने] भो तत्त्वार्थाधिगमसूत्र पर तथा