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( २० ) निरूपण है तथा षट् द्रव्य का भी वर्णन है । पदार्थों के विषय में जैनदर्शन और जैनेतर दर्शनों की मान्यता भिन्न स्वरूप वाली है । नैयायिक १६ पदार्थ मानते हैं, वैशेषिक ६-७ पदार्थ मानते हैं, बौद्ध चार पदार्थ मानते हैं, मीमांसक ५ पदार्थ मानते हैं, तथा वेदान्ती एक अद्व ेतवादी है । जैनदर्शन ने छह पदार्थ अर्थात् छह द्रव्य माने हैं । उनमें एक जीव द्रव्य है और शेष पाँच जीव द्रव्य हैं । पाँचवें अध्याय में है ।
इन सभी का वर्णन इस
[६] छठे अध्याय में - २६ सूत्र हैं । इसमें प्रस्रव तत्त्व के कारणों का स्पष्टीकरण किया गया है । इसकी उत्पत्ति योगों की प्रवृत्ति से होती है । योग पुण्य और पाप के बन्धक होते हैं । इसलिये पुण्य और पाप को पृथक् न कहकर प्रस्रव में ही पुण्य-पाप का समावेश किया गया है ।
[७] सातवें अध्याय में - ३४ सूत्र हैं । इसमें देशविरति और सर्वविरति के व्रतों का तथा उनमें लगने वाले अतिचारों का वर्णन किया गया है ।
इसमें मिथ्यात्वादि हेतु से होते हुए
[८] प्राठवें अध्याय में - २६ सूत्र हैं । बन्ध तत्त्व का निरूपण है ।
[8] नौवें अध्याय में - ४६ सूत्र हैं । निरूपण किया गया है ।
इसमें संवर तत्त्व तथा निर्जरा तत्त्व का
[१०] दसवें अध्याय में -७ सूत्र हैं ।
इसमें मोक्षतत्त्व का वर्णन है ।
उपसंहार में ( ३२ श्लोक प्रमारण) अन्तिम कारिका में सिद्ध भगवन्त के स्वरूप इत्यादि का सुन्दर वर्णन किया है । प्रान्ते ग्रन्थकार ने भाष्यगत प्रशस्ति ६ श्लोकों में देकर ग्रन्थ की समाप्ति की है ।
* श्रीतत्त्वार्थसूत्र पर उपलब्ध अन्य ग्रन्थ *
श्री तत्त्वार्थ सूत्र पर वर्तमान काल में लभ्य मुद्रित अनेक ग्रन्थ विद्यमान हैं । ( १ ) श्रीतत्त्वार्थ सूत्र पर स्वयं वाचक श्री उमास्वाति महाराज की 'श्रीतत्त्वार्थाभिगम भाष्य' स्वोपज्ञ रचना है, जो २२०० श्लोक प्रमाण है ।
( २ ) श्रीसिद्धसेन गरिण महाराज कृत भाष्यानुसारिणी टीका १८२०२ श्लोक प्रमाण की है । यह सबसे बड़ी टीका कहलाती है ।