________________
XAMINIMIRMINIMINIMINIMIRMIKANKARNAMEANAME
राजस्थान के गौरव - जैनाचार्य श्री जिनोत्तम सूरीश्वरजी
राजस्थान की वीर भूमि की गोद में शूरवीरता, त्याग और बलिदान की गौरव गाथाएं गुजती रही हैं। इस प्रदेश का कण-करण शुरवीरता का अनोखा इतिहास अपने में मंजोये हुए है । वोर प्रसूता भूमि की गाद संत महात्मानों, त्यागी तपस्वियों, भक्तों ग्रादि से भो । भरी पड़ी है। प्रदेश का सम्भवत:सा कोई हिस्सा नहीं होगा जहां धर्म को अलख जगाने, मानव सेवा करने, जन-जन का एवं स्व का कल्याण करने वाले संत-महात्माओं, साधुमंन्यासियों, त्यागी-तपस्वियों, भक्तों की कमी रही हो। इस कारण शूरवीरता के लिए इतिहासप्रसिद्ध राजस्थान धर्म-भक्ति के क्षेत्र में भी विश्व में अपनी अनोखी पहचान बनाये हए है। धार्मिक क्षेत्र में तो राजस्थान धनाढ्य समझा जाता है; जिसकी छत्रछाया में विश्व के अदभुत एवं अनोखी शिल्प कलाकृतियों के बेजोड़ मन्दिरों तथा धार्मिक स्थलों की भरमार है; जिमफे दर्शन करने, निहारने एवं जिसको गोद में बैठकर प्राध्यात्मिक शांति प्राप्त करने के लिए विश्व का जन समुदाय उमड़ पड़ता है।
धार्मिक एवं ग्राध्यात्मिक क्षेत्र में जन-जन को उदबोधित करने वाले सभी धर्मों के धर्माचार्यो, साधु-साध्वियों, संन्यासियों, भक्तों ने राजस्थान को पवित्र एवं पतितपावन धरा । को अपनी कर्मभूमि माना है। इसी धर्मभुमि का सिरोही क्षेत्र अाज भी अपनी गोद में विभिन्न धार्मिक स्थलों. ज्ञान संस्थानों पावना-उपासना-पाराधना आदि स्थलों के लिए * जन-जन को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। इसी सिरोही जिले की पावन धरा जावाल में जैन धर्मावलम्बी श्री उत्तमचन्द प्रमोचन्दजो मड़िया के यहाँ वि. सं. 2018 चत्र वदी 6 को एक ऐसे गुणवान, ध्यानवान, भाग्यवान, कर्मवान पुत्र जयन्तीलाल का जन्म हया जो जैन साधु के सभी पदो से अलंकृत होते हए वि. सं. 2054 की वैशाख शुक्ला 6 मोमवार 12 मई 1997 को इसी प्रदेश के तीर्थों के लिए विख्यात पाली जिले के लाटाडा में जैन धमिक क्षेत्र के सबगे ऊंन पद जैनाचार्य की पदवी को प्रानकर इस प्रदेश की प्रार अधिक गरिमा नवा रहे हैं।
जैनमुनि श्री जिनोत्तम विजयजी ने सिरोही जिले के जाबाल के जैन श्री उत्तमचन्द अमीचन्द मरडिया के यहाँ जन्म लेने के बाद अपनी माता श्रीमती दाड़मी बाई को धर्म अाराधना, गुरुभक्ति, जैनधर्म के प्रति आस्था एवं विश्वास से प्रभावित होकर मात्र दस वर्ष को अल्पायु में जैनाचार्य श्रीमद् सुशील सूरीश्वरजी म. सा. के पास अपनी जन्मभूमि का मान व गौरव बढ़ाने के लिए जैन साधुत्व को वि. सं. 2).28 ज्येष्ठ वदो 5 को जावाल में हो - दीक्षा ग्रहण को।