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5 जीवन झलक फ्र
इन महर्षि का जन्म चाणस्मा (गुजरात) में वि. सं. १९७३ भाद्रपद शुक्ला १२ के शुभ दिन हुआ था । पिताजी का नाम चतुरभाई और माताजी का नाम चंचलबेन । माता-पिता के धार्मिक संस्कारों, ज्ञानी -महात्माओं के प्रवचनों एवं ज्ञान-वैराग्य की सत्पुस्तकों से इनकी वैराग्य-भावना परिपुष्ट हुई, फलस्वरूप १४ वर्ष की लघु आयु में इन्होंने वि. स. १६८८ में दीक्षा ग्रहण की। ये परम पूज्य शासनसम्राट् के समुदाय के प. पू. श्राचार्य श्री दक्षसूरिजी म. सा. के शिष्य हुए।
गौरवमय परिवार : चारणस्मा के श्रेष्ठिवर्य श्री चतुरभाई मेहता का सम्पूर्ण परिवार गौरवशाली है । इस परिवार के सभी सदस्य दीक्षित हुए। बड़े पुत्र दलपत भाई ( प. पू. प्राचार्यश्री दक्षसुरीश्वरजी म. ) सर्वप्रथम दीक्षित हुए । तत्पश्चात् लघुपुत्र श्री गोदड़ भाई ( प. पू. श्राचार्यश्री सुशील सूरीश्वरजी म. ) दीक्षित हुए। छोटे पुत्रवर विक्रम भाई की भी दीक्षा की पुनीत भावना थी, परन्तु वे समय स्वर्गवासी हुए । लघु पुत्री श्री तारा बहन ( पू. साध्वी श्री रवीन्दु प्रभाश्री जी म. ) भी दीक्षित हुई । स्वयं चतुर भाई ने भी पू. मुनिश्री चन्द्रप्रभ विजय जी म. के रूप में दीक्षित होकर आत्मकल्याण किया था ।
पू. श्री सुशील गुरुदेव श्रीजी साहित्यरत्न, कविभूषण आदि अलंकरणों से विभूषित हुए । साथ ही जैनधर्म दिवाकर, मरुधर - देशोद्धारक, तीर्थ-प्रभावक, राजस्थान- दीपक, शासनरत्न आदि अनेक विरुदों से विभूषित हुए । इन अलंकरणों को आपने केवल जनता के प्रेम के कारण स्वीकार किया है । श्राप ही के शब्दों