________________
पूज्य श्री सुशील गुरुदेवश्री संस्कृत, प्राकृत एवं गुजराती भाषाओं के मर्मज्ञ एवं अधिकारी विद्वान् हैं। स्वयं गुजराती भाषा-भाषी होते हुए भी वे हिन्दी में - साहित्य रचते हैं। उन्होंने लगभग १२५ पुस्तकें लिखी हैं जिनमें अधिकांश हिन्दी
भाषा में हैं।
उनकी दृष्टि में आधुनिक युग की नवपीढ़ी को सस्ते कामुक साहित्य से बचाने के लिए साहित्यकारों को सत् साहित्य का निर्माण करना चाहिए ।
प्राचार्यश्री स्वयं इस दिशा में विशेष योगदान कर रहे हैं। नवपीढ़ी को संस्कारित A करने के लिए समाज के अग्रगण्य, शिक्षक, व्यापारी, धर्माचार्य, नेतागण आदि स्वयं
उच्च एवम् प्रादर्श-जीवन-यापन करें।
जिन पडिमा जिन सारिखी संसार-समुद्र से तिरने के लिए एवं मुक्तिमन्दिर में पहुँचने के लिए जिनप्रतिमा अलौकिक एवं अद्वितीय नौका तुल्य है।
जिनमन्दिर के निर्माण एवं प्राचीन मन्दिरों के जीर्णोद्धार का पुनीत कार्य - सद्गृहस्थों को अवश्य करवाना चाहिए ।
पूज्य गुरुदेवश्री के वरद-करकमलों द्वारा अनेक प्रसिद्ध तीर्थों एवं जिनप्रासादों * की अंजनशलाका-प्रतिष्ठायें सम्पन्न हुई हैं ।
११८ जिनमन्दिरों को प्रतिष्ठायें एवं अंजनशलाका करवाने का महान् श्रेय * पूज्य श्री सुशील गुरुदेवश्री को प्राप्त है ।
प्राचार्यश्री का निर्मल, तपशील एवं निस्पृह जीवन कमल के समान निर्लेप पोक्खर पत्तं व निरुवलेवे और धरती के समान• क्षमाशील 'पुढवीसमोमुरणी हवेज्जा ' है।