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६४ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ हिन्दी पद्यानुवाद * हिन्दी पद्यानुवाद
स्निग्धत्व एवं रूक्षता का बन्ध पुद्गल का यही । . जघन्य गुण से उन उभय का बन्ध होता है नहीं ॥ स्निग्ध के संग स्निग्ध मिलता रूक्ष के संग रूक्षता । लेते न पुद्गल बन्ध है सूत्रार्थ की यह स्पष्टता ।। ११ ॥ दो अधिक गुण अंश बढ़ते बन्ध पुद्गल प्राप्यता । सम अधिक परिणाम पाते अंश न्यून अधिकता ।। गुण तथा पर्यायवाला द्रव्य जिनमत सर्वदा ।
काल कोई द्रव्य कहता आदि से ही सर्वथा ।। १२ ।। 卐 मूलसूत्रम्
द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः ।। ५-४० ॥ तद्भावः परिणामः ॥ ५-४१ ॥ अनादिरादिमांश्च ॥ ५-४२ ॥ रूपिष्वादिमान् ॥ ५-४३ ॥
योगोपयोगी जीवेषु ॥ ५-४४ ॥ * हिन्दी पद्यानुवाद
द्रव्य का प्राश्रय करे जो निर्गणी नामीकरण । .. गुण यही षड्द्रव्य का भाववर्ती परिणमन ।। प्रादि प्रनादि रूप दो परिणाम की है कामना । रूपी अरूपी वस्तुओं की प्रादि अनादि भावना ।। १३ ।। जीव के ये योगवर्ती उपयोग में है सहचरी । फिर वही ये परिणाम प्रादि शास्त्र के भी अनुसरी ॥ अध्याय पंचम के चवालीस सूत्र को एकाग्र से । जो अर्थ करते हैं सदा सब सिद्धता को वेल से । १४ ।। तत्त्वार्थाधिगम सूत्र को सानुवाद विवेचना । अध्याय पंचम पूर्ण कर की द्रव्यभेद विबोधना ॥ पद्य हिन्दी में रचे हैं सरल भावों में भरे ।
स्वाध्याय करता जो सुशील भव महासागर तरे ॥ १५ ॥ ॥ इति श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्र के पंचमाध्याय का हिन्दी पद्यानुवाद समाप्त ॥