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हिन्दी पद्यानुवाद ]
पञ्चमोऽध्यायः
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ॐ मूलसूत्रम्
संघातमेदेभ्य उत्पद्यते ॥ ५-२६ ॥ भेदावणुः ॥ ५-२७ ॥
भेदसंघाताभ्यां चाक्षुषाः ॥ ५-२८ ॥ * हिन्दी पद्यानुवाद
संघात एवं भेद से फिर संघात-भेद मानिए । फिर भेद से अणु उद्भव गुह्यार्थ को पहचानिए ।। भेद और संघात से स्कन्ध उत्पन्न जानिए ।
नेत्र से ये दृष्ट निर्मल शास्त्र मर्म विचारिए ॥ ६ ॥ ॐ मूलसूत्रम्
उत्पाद-व्यय-ध्रौव्ययुक्त सत् ॥ ५-२६ ॥ तभावाव्ययं नित्यम् ॥ ५-३० ॥
अर्पिताऽनपितसिद्धः ॥ ५-३१ ॥ * हिन्दी पद्यानुवाद
उत्पाद व्यय अरु ध्रौव्यता हो उसे 'सत्' मानिए । स्वरूप को अक्षुण्ण रखे नित्य उसको जानिए । है सिद्ध अर्पित धर्म से एवं अनर्पित धर्म से ।
विश्व में नहीं शुद्ध कोई बिन स्याद्वादी मर्म से ॥ १० ॥ 卐 मूलसूत्रम्
स्निग्धरूक्षत्वाद् बन्धः ॥ ५.३२ ॥ न जघन्यगुणानाम् ॥ ५-३३ ॥ गुणसाम्ये सदृशानाम् ॥ ५-३४ ॥ द्वयधिकादिगुणानां तु ॥ ५-३५ ॥ बन्धे समाधिको पारिणामिको ॥ ५-३६ ॥ गुणपर्यायवद् द्रव्यम् ॥ ५-३७ ॥ कालश्चेत्येके ॥ ५-३८ ॥ सोऽनन्तसमयः ॥ ५-३६ ॥