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________________ 8188 ] पञ्चमोऽध्यायः [ ८५ उक्त कथन पर यदि जरा सूक्ष्म दृष्टि से विचार करेंगे तो ज्ञात होगा कि, जैसे रूपी द्रव्यों में प्रवाह की अपेक्षा अनादि एवं व्यक्ति की अपेक्षा श्रादिमान परिणाम हैं, वैसे अरूपी द्रव्यों में भी दोनों प्रकार के परिणाम रहे हुए हैं । उदाहरण तरीके, गति करने में प्रवृत्त हुए पदार्थ को धर्मास्तिकाय सहायता करता है । विवक्षित समय में किसी वस्तु पदार्थ की गति हुई तो उस समय धर्मास्तिकाय में उस वस्तु पदार्थ सम्बन्धी उपग्राहकत्व रूप पर्याय उत्पन्न हुआ। इससे पहले उसमें उस वस्तु पदार्थ की अपेक्षा उपग्राहकत्व रूप परिणाम नहीं था । अब ज्योंही वह पदार्थ स्थिर बनता है तब उपग्राहकत्व रूप परिणाम विनश जाता है। इसलिए वह उपग्राहकत्व रूप परिणाम आदिमान हुआ । किन्तु प्रवाह की अपेक्षा अनादिकाल से उपग्राहकत्व रूप परिणाम उसमें रहता है । इस तरह समस्त प्ररूपी द्रव्यों में भी दोनों प्रकार के परिणाम घट सकते हैं । ऐसा होते हुए भी यहाँ पर श्रीतत्त्वार्थसूत्रकार वाचकप्रवर श्रीउमास्वाति महाराज ने अरूपी में अनादि और रूपी में आदिमान परिणाम होता है; ऐसा क्यों कहा ? इस प्रश्न पर विचार करते हुए लगता है कि - यहाँ श्रीतत्त्वार्थकार वाचकप्रवरश्री ने प्रस्तुत प्रतिपादन शिशुबाल जीवों की स्थूलबुद्धि को लक्ष्य में रख करके ही किया होगा । अथवा रूपी द्रव्यों में सादि परिणाम की प्रधानता और प्ररूपीद्रव्यों में अनादि परिणाम की मुख्यता को लक्ष्य में रखकर भी उपर्युक्त उल्लेख किया होगा, ऐसी सम्भावना है । अथवा अनादि और आदि ar कोई भिन्न- जुदा ही अर्थ हो, ऐसा भी सम्भावित है । इस विषय में तो 'तत्त्वं तु केवलिनो वदन्ति' अर्थात् तत्त्व ( सत्य हकीकत) क्या है ? यह तो सर्वज्ञ- केवली भगवन्तों पर या बहुश्रुत ज्ञानियों पर छोड़ना ही हितावह है ।। ५-४३ ।। * जीवेषु श्रादिमान - परिणामः 5 मूलसूत्रम् योगोपयोगी जीवेषु ॥ ५-४४ ॥ * सुबोधिका टीका * यद्यपि जोवोऽरूपी, तथापि तत्र योगोपयोगरूपादिमान् परिणामः सम्भवः वर्तते । जीवेषु रूपषु श्रपि सत्सु योगोपयोगी परिणामावादिमन्तौ भवतः । स च पश्चदशभेद:, द्वादशविधश्व स । योगोऽपि द्विविधः भावद्रव्ययोगौ । आत्मशक्ति विशिष्टो भावः, मन-वचनकायनिमित्तात् श्रात्मप्रदेश - परिस्पन्दनं द्रव्ययोगश्च । पञ्चदशभेदाश्चानुक्रमतः प्रौदारिक काययोगः, प्रौदारिकमिश्रकाययोगः, वैक्रियिककाययोगः, वैक्रियिक मिश्रकाययोगः,
SR No.022534
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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