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५॥३३ ]
पञ्चमोऽध्यायः
* बन्धविषये प्रथमोऽपवादः *
+ मूलसूत्रम्
न जघन्यगुणानाम् ॥ ५-३३ ॥
* सुबोधिका टीका * ये पुद्गलाः जघन्यगुण स्निग्धाः जघन्यगुणरूक्षाश्च तेषां परस्परेण बन्धो न भवति । जघन्यशब्देनैकसंख्या गुणशब्देन च शक्तिरंशः ग्राह्यः ।। ५-३३ ॥
* सूत्रार्थ-स्निग्ध और रूक्ष के जघन्य गुण युक्त पुद्गलों का परस्पर बन्ध नहीं होता है ।। ५-३३ ।।
ॐ विवेचनामृत जघन्य गुण वाले स्निग्ध और रूक्ष अवयवों का परस्पर बन्ध नहीं होता है ।
प्रस्तुत सूत्र में बन्ध-निषेध है। तदनुसार यदि परमाणुषों में स्निग्धत्व और रूक्षत्व के अश जघन्य हों ऐसी अवस्था में उनका परस्पर बन्ध नहीं होता। इस प्रकार निषेधार्थक सूत्र से यह फलित होता है कि, जिन परमाणुओं का स्निग्ध तथा रूक्षत्व अंश मध्यम और उत्कृष्ट संख्यावाला हो उनका परस्पर बन्ध होता है। किन्तु आगे माने वाले ३४ वें सूत्र में इसका भी अपवाद है कि समान अंश वाले अर्थात् जिन तुल्य अवयवों का स्निग्धत्व और रूक्षत्व का गुण समान हो, उनका भी परस्पर बन्ध नहीं होता है।
इस कथन से यह सिद्ध होता है कि, असमान गुण वाले तुल्य अवयवों का बन्ध होता है । परन्तु इस फलितार्थ में भी मर्यादा रही हुई है, जिसे (३५ वें) सूत्र में प्रगट करते हैं, कि यदि असमान अंशवाले समान अवयवों में भी जिन अवयवों का स्निग्धत्व, रूक्षत्व गुणांश, दो अंश, तीन अंश, चार अंश इत्यादि अधिक हो तो उनका परस्पर बन्ध हो सकता है।
अन्यथा अन्य-दूसरे की अपेक्षा जिसका गुण एक ही अंश अधिक है उनका परस्पर बन्ध नहीं होता।
[प्रस्तुत 'न जघन्यगुणानाम् (५-३३)' इस सूत्र का प्रागे के दो सूत्रों के साथ सम्बन्ध होने से यहाँ पर साधारण निर्देश किया है]
* विशेष स्पष्टीकरण-कुछ पुद्गलों में रूक्ष स्पर्श तो कुछ पुद्गलों में स्निग्ध स्पर्श होता है। अब जिन-जिन पुद्गलों में जो-जो स्निग्ध व रूक्ष के गुण होते हैं, उन-उन समस्त पुद्गलों के वे गुण समान ही हों, ऐसा नियम नहीं है; न्यूनाधिक भी होते हैं।
जैसे कि-(१) जल-पानी, बकरी का दूध, भैंस का दूध। इन प्रत्येक में स्निग्ध गुण होते हुए भी समस्त में समानता नहीं है। (१) जल-पानी से बकरी के दूध में स्निग्धता विशेष होती है। उससे भी अधिक भैंस के दूध में स्निग्धता होती है।