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६४ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ ५।३२. * पौद्गलिकबन्धहेतुः * 卐 मूलसूत्रम्
स्निग्धरूक्षत्वाद् बन्धः ॥५-३२ ॥
* सुबोधिका टीका * स्निग्ध-रूक्षयोः पुद्गलयोः परस्परं स्पृष्टयोः बन्ध: जायते तदा तस्य बन्धरूपपरिणमनं भवति ।
विशेषेणोच्यते चिक्कणता एव स्नेहः तद्विपरीतं रूक्षं तथा पूरण-गलनमयं पुद्गलम् । पूरणधर्मापेक्षया संघातम्, गलनधर्मापेक्षया भेदं भवति । एवं परिणतिसर्वात्मसंयोगस्वरूपं बन्धम् एव तस्य संघातम् ।। ५.३२ ।।
* सूत्रार्थ-स्निग्ध और रूक्ष पुद्गलों का आपस में स्पर्श होने पर उनका बन्ध रूप परिणमन होता है। अर्थात्-स्निग्ध और रूक्ष हेतु से बन्ध होता है ।। ५-३२ ।।
ॐ विवेचनामृत स्निग्ध और रूक्ष स्पर्श से पुद्गलों का बन्ध होता है। बन्ध यानी पुद्गलों का परस्पर एकमेक संश्लेष, जुड़ाव। अर्थात् भिन्न-भिन्न पुद्गल [स्कन्ध या परमाणु] परस्पर जुड़कर एक हो जाए वह बन्ध है। यह संश्लेष पुद्गल में रहे हुए स्निग्ध और रूक्ष स्पर्श गुण से होता है। स्निग्ध स्पर्शवाले पुदगलों का स्निग्ध एवं रूक्ष स्पर्शवाले इन दोनों प्रकार के पुद्गलों के साथ बन्ध होता है। उसी तरह रूक्ष स्पर्शवाले पुद्गलों के लिए भी जानना।
विशेष स्पष्टीकरण-पुद्गल स्कन्ध की उत्पत्ति के लिए इसी अध्याय में छब्बीसवाँ (२६) सूत्र 'संघातभेदेभ्य उत्पद्यन्ते' कह आये हैं। पुन: उसी का स्पष्टीकरण करते हैं कि यह केवल अवयवभूत परमाणु प्रमुख के पारस्परिक संयोगमात्र से उत्पन्न नहीं होता, किन्तु अन्य गुण की भी आवश्यकता रहती है। यहाँ पर प्रस्तुत सूत्र का उद्देश्य यह है कि, अवयवों के पारस्परिक संयोग के बिना स्निग्धत्व और रूक्षत्व गुण के सिवाय बन्ध नहीं हो सकता, पुद्गल का एकत्व परिणाम जो बन्ध है, वह उपरोक्त गुण से होता है। अर्थात्-द्वयणुकादि स्कन्धों का एकत्व परिणाम रूप बन्ध स्निग्धत्व और रूक्षत्व गुण से ही होता है।
स्निग्ध और रूक्ष अवयवों का श्लेष दो प्रकार से होता है। एक सजातीय के साथ अर्थात स्निग्ध का स्निग्ध के साथ या रूक्ष का रूक्ष के साथ और अन्य-दूसरा विजातीय के साथ अर्थात् स्निग्ध का रूक्ष के साथ और रूक्ष का स्निग्ध के साथ ।
___ श्लेष का अर्थ है सन्धि, संयोग या मेल । उनका बन्ध कैसे गुण वाले अवयवों से होता है तथा किससे नहीं होता है, इसका विधान आगे के सूत्र में करते हैं ।। ५-३२ ।।