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________________ ५० ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ३।१४ द्वीपेषु समुद्रद्वये च समन्दरशिखरेषु । भारतका हैमवतका इत्येवमादयः क्षेत्रविभागेन । जम्बूद्वीपका लवणका इत्येवमादयः द्वीप-समुद्रविभागेन इति । के मनुष्याः ? मनुष्यायुष्य-गतिनामकर्मणि संजातोदये जन्मधारिणः जीवाः मनुष्याः । अतः मनुष्यपर्यायः जन्मापेक्षया न तु केनापि अन्येन हेतुना। मनुष्यजन्म मानुषोत्तरपर्वतान्तरक्षेत्रेषु एव, न तु बहिः । के च ते मनुष्याः कति वा प्रकाराः ? तत्तु कथ्यतेऽत्र अग्रसूत्रे हि ॥ ३-१४ ।। * सूत्रार्थ-मानुषोत्तर पर्वत के पूर्वी भाग में जो द्वीप हैं, उनमें मनुष्य रहते हैं। अर्थात्-मानुषोत्तर पर्वत के भीतर के क्षेत्र में ही मनुष्यों का जन्म-मरण होता है ।। ३-१४ ॥ ॐ विवेचनामृत विश्व में मनुष्यायुष्य और मनुष्यगति नामकर्म के उदय से जो जीव मनुष्यरूप में जन्म धारण करता है, उसे मनुष्य कहते हैं। इसलिए यह मनुष्य पर्याय जन्म की अपेक्षा ही कही जाती है, न कि अन्य किसी कारण से। पुष्करवर द्वीप में जो मानुषोत्तर नामक पर्वत है, वह चूड़ी के प्राकार गोल तथा पुष्करवर द्वीप के मध्य शहर पनाह के समान घिरा हुआ है। इसी कारण के दो विभाग हो गये हैं। मनुष्यजन्म मानूषोत्तर पर्वत के भीतर के क्षेत्र में ही होता है, बाहर नहीं। मनुष्यों का निवास स्थान होने के कारण ही इस पर्वत का नाम मानुषोत्तर रखा है। इसके भीतरी विभाग में अर्द्ध पुष्करवर द्वीप, कालोदधि समुद्र, धातकीखण्ड, लवण समुद्र, और जम्बूद्वीप, क्रमश:- यथाक्रम से हैं। इन क्षेत्रों में मनुष्यों का जन्म तथा मरण होता है। इसलिए इसे मनुष्यलोक कहते हैं। इसकी सीमा-मर्यादा रखने वाला मानुषोत्तर पर्वत है। इस पर्वत के परे जितने क्षेत्र आये हैं, उनमें मनुष्यों का जन्म या मरण दोनों में से एक भी नहीं होता है। वहाँ पर तो सिर्फ विद्यासम्पन्न मुनियों का और वैक्रियलब्धि वाले मनुष्यों का ही आवागमन होता है। किन्तु उनका जन्म या मरण कभी नहीं होता है। नियमात् उनके जन्ममरण का स्थान मनुष्यलोक ही है। इस सूत्र का सारांश यह है कि-मानुषोत्तर पर्वत के पहले मनुष्यों का वास है। विश्व में भले द्वीप और समुद्र असंख्य हों, किन्तु जन्म से मनुष्यों के निवास मानुषोत्तर पर्वत के पहले जम्बूद्वीप, धातकीखण्ड और पुष्करवर का अर्ध भाग मिलकर ढाई द्वीप में ही हैं। तथा तिर्यच प्राणियों का वास ढाई द्वीप उपरान्त बाहर के प्रत्येक द्वीप-समुद्र में भी है।
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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