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श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ ३१ नारकी जीवों के निवासस्थान अधोलोक में हैं। इसलिए यहाँ की भूमियाँ 'नरक भूमि' कहलाती हैं। उस भूमि के सात विभाग हैं जो समश्रेणी में नहीं हैं किन्तु एक-दूसरे के ऊपर-नीचे
उनका अायाम (लम्बाई) और विष्कम्भ (चौडाई) भी सम नहीं है, परन्त नीचे-नीचे की भूमि की लम्बाई और चौड़ाई अधिक-अधिक है। अर्थात्-पहली नरक भूमि से दूसरी नरक भूमि की लम्बाई-चौड़ाई अधिक है तथा दूसरी नरक भूमि से तीसरी नरक भूमि की लम्बाई-चौड़ाई भी अधिक होती गई है। इसी तरह छठी तम:प्रभा नरक से सातवीं महातमःप्रभा नरक भूमि तक की लम्बाई-चौड़ाई भी अधिक-अधिकतर विस्तार वाली है। ये सातों नरक भूमियाँ एक-दूसरे के नीचे हैं, किन्तु परस्पर संलग्न नहीं हैं। एक-दूसरी के बीच बहुत ही अन्तर है
_ इस अन्तर में घनोदधि, घनवात, तनुवात और आकाश क्रमश: नीचे-नीचे हैं। अर्थात् कहा है कि पहली नरक भमि के नीचे घनोदधि है, इसके नीचे घनवात है, घनवात के नीचे है तथा तनुवात के नीचे आकाशप्रदेश है। इस आकाशप्रदेश के पश्चात् दूसरी नरक भूमि और तीसरी नरक भूमि के बीच भी क्रमशः घनोदधि आदि हैं। इसी तरह सातवीं नरक भूमि तक सब भूमियों के नीचे उसी क्रम से घनोदधि आदि हैं। ऊपर-ऊपर की नरक भूमि से नीचे-नीचे की नरकभूमि की मोटाई न्यून-न्यून है। अर्थात् ऊपर से लेकर नीचे के तल तक का भाग कमकम है। जैसे
(१) पहली रत्नप्रभा नरक भूमि की मोटाई एक लाख और अस्सी हजार (१८००००) योजन की है तथा पहोलाई यानी लम्बाई एक रज्जु (एक राज) स्वयंभूरमण समुद्र तक की है।
(२) दूसरी शर्कराप्रभा नारकी की मोटाई एक लाख और बत्तीस हजार (१३२०००) योजन की है तथा पहोलाई यानी लम्बाई ढाई रज्जु (ढाई राज) की है।
(३) तीसरी वालुकाप्रभा नारकी की मोटाई एक लाख और अट्ठाईस हजार (१२८०००) योजन की है तथा पहोलाई यानी लम्बाई चार रज्जु (चार राज) की है।
(४) चौथी पंकप्रभा नरक की मोटाई एक लाख और बीस हजार (१२००००) योजन की है तथा पहोलाई यानी लम्बाई पाँच रज्जु (पाँच राज) की है।
(५) पाँचवीं धूमप्रभा नरक की मोटाई एक लाख और अठारह हजार (११८०००) योजन की है तथा पहोलाई यानी लम्बाई छह रज्जु (छह राज) की है।
(६) छठी तमःप्रभा नरक की मोटाई एक लाख और सोलह हजार (११६०००) योजन की है तथा पहोलाई यानी लम्बाई साढ़े छह रज्जु (साढ़े छह राज) की है।
(७) सातवीं महातमःप्रभा [तमःतमः प्रभा] नरक की मोटाई एक लाख और पाठ हजार (१०८०००) योजन की है तथा पहोलाई यानी लम्बाई सात रज्जु (सात राज) की है।
इस प्रकार पृथ्वियाँ-भूमियाँ नीचे-नीचे विशेष पहोली होने से छत्र के ऊपर छत्र के जैसा उनका आकार होता है। इन सातों नरकभूमियों के नीचे जो सात घनोदधि-वलय हैं, उन सबकी