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________________ परिशिष्ट-१ ॥ नमो नमः श्रीजनागमाय ॥ है * श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रस्य जैनागमप्रमारणरूप-प्राधारस्थानानि * [+ चतुर्थोऽध्यायः ॥ ] wommmmision 卐 मूलसूत्रम् देवाश्चतुनिकायाः ॥ ४-१ ॥ * तस्याधारस्थानम्चउम्विहा देवा पण्णता, तं जहा-भवणवई वाणमंतर जोइस वेमाणिया। [व्याख्या. श. २, उ. ७]] 卐 मूलसूत्रम् तृतीयः पीतलेश्यः ॥ ४-२ ॥ * तस्याधारस्थानम् भवणवइ वारणमंतर....चत्तारि लेस्सायो....जोतिसियाणं एगा तेउलेसा.... वेमाणियाणं तिन्नि उवरिमलेसानो। [स्था. स्थान १, सूत्र. ५१] ॐ मूलसूत्रम् दशा-ऽष्ट-पञ्च-द्वादश-विकल्पाः कल्पोपपन्नपर्यन्ताः ॥ ४-३ ॥ * तस्याधारस्थानम्(१) दसहा उभवणवासी, अट्टहावणचारिणो । पंचविहा जोइसिया, दुविहा वेमाणिया तहा ॥ २०३ ॥ वेमाणिया उ जे देवा, दुविहा ते वियाहिया । कप्पोवगायबोधव्वा, कप्पाईया तहेव य ॥ २०७ ॥ कप्पोवगा वारसहा, सोहम्मीसाणगा तहा । सणंकुमारमाहिंदा, वम्मलोगा य लंतगा ॥ २०८ ॥ महासुक्का सहस्सारा, पारगया पारगया तहा । पारणा अच्चुया चेव, इह कप्पोवगासुरा ॥ २० ॥ [उत्तराध्ययन सूत्र, अध्या. ३६]
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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