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४।२२ ] चतुर्थोऽध्यायः
[ ४६ जैसे-जैसे जघन्यस्थिति दो सागरोपम से कम (न्यून) हो जाती है, वैसे-वैसे क्रमशः गति की शक्ति भी हीन-हीन हो जाती है। इसलिए यावत् सर्व जघन्य स्थिति वाले देव नीचे तीसरी वालुकाप्रभा नरक की पृथ्वी पर्यन्त जा सकते हैं। शक्ति की अपेक्षा यह विचारणा है, किन्तु गमन तो मात्र तीसरी नरक तक ही है।
विशेष शक्ति होते हुए भी देव कारणवशात् तीसरी नरक पृथ्वी पर्यन्त ही जाते हैं, प्रायः इससे आगे नहीं जाते हैं।
[सीतेन्द्र चौथी पङ्कप्रभा नरक में गये थे। इसलिए यहाँ पर प्रायः शब्द का प्रयोग किया है ।]
ऊपर-ऊपर के देवों में महानुभावता तथा उदासीनता अधिकाधिक है। इसलिए वे देव अधिक गति-गमन नहीं करते हैं।
नववेयक तथा पाँच अनुत्तरवासी देव तो कभी अपने विमान से बाहर नहीं जाते हैं।
सारांश- गमनक्रिया की शक्ति और गमनक्रिया की प्रवृत्ति ये दोनों देवों में उत्तरोत्तर हीनहीनतर होती है। इसलिए वे गमन तथा रति इत्यादि क्रिया में उत्तरोत्तर हीनविषयी होते हैं। जैसे-- सनत्कुमारादि देव, जिनकी जघन्यस्थिति दो सागरोपम की होती है वे नीचे सातवीं नरक पृथ्वी और तिरछे असंख्यात हजारों कोडाकोडी योजन पर्यन्त जाने की शक्ति-सामर्थ्य रखते हैं। इससे ऊपर के विमानवासी देव गति-विषय हीन-हीनतर होते हए यावत तीसरे नरक पर्यन्त जा सकते हैं। गतिविषयक शक्ति चाहे जितनी अधिक हो, किन्तु कोई भी देव तीसरे नरक से आगे न गया है और न जावेगा।
(२) देह-शरीर परिमारण-देह-शरीर का परिमाण (प्रमाण) भी ऊपर-ऊपर के देवों में अपेक्षाकृत कम-कम होता गया है। पहले और दूसरे देवलोक के देवों के देह-शरीर की ऊँचाई सात हाथ प्रमाण है। तीसरे और चौथे देवलोक के देवों के शरीर की ऊँचाई छह हाथ है। पाँचवें और
के देवों के शरीर की ऊँचाई पाँच हाथ की है। सातवें और आठवें देवलोक के देवों के देह-शरीर की ऊँचाई चार हाथ की है। नौवें से बारहवें देवलोक तक के देवों के शरीर की ऊँचाई तीन हाथ की है। नौ ग्रेवेयक के देवों के शरीर की ऊँचाई दो हाथ की है। तथा पाँच अनुत्तरवासी देवों के देह-शरीर की ऊंचाई एक हाथ प्रमाण है।
(३) परिग्रह-यहाँ परिग्रह शब्द से विमानों का परिवार अभिप्रेत है। वैमानिकनिकाय में इन्द्रक, श्रेणिगत तथा पुष्पप्रकीर्णक इस तरह तीन प्रकार के विमान होते हैं। मध्य में आये हुए विमान को इन्द्रकविमान कहते हैं। चार दिशाओं में पङ्क्तिबद्ध आये हुए विमान श्रेरिणगत हैं। बिखरे हुए पुष्पों की भाँति छूटे-छूटे रहे हुए विमान पुष्पप्रकीर्णक कहे जाते हैं।
श्रेणिगत विमान त्रिकोण, चतुष्कोण और वाटलाकार इस तरह तीन प्रकार के हैं। तथा पहले त्रिकोण, पश्चाद् चतुष्कोण, बाद वाटलाकार, तदनु त्रिकोण"इस तरह क्रमशः विमान प्राये हए हैं। ये विमान इन्द्रक विमान से चारों दिशाओं में पंक्तिबद्ध पाये हैं।