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________________ ४।१४ ३० ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ जम्बूद्वीप में दो चन्द्र होने से ग्रह, नक्षत्र और तारा की संख्या द्विगुणी हो जाती है । ___ ढाई द्वीप-समुद्र में ग्रह, नक्षत्र और ताराओं की संख्या द्वीप-समुद्र नक्षत्र तारा जम्बूद्वीप : १७६ १३३६५० कोड़ाकोड़ी लवणसमुद्र ३५२ ११२ २६७६०० कोड़ाकोड़ी धातकीखण्ड १०५६ ८०३७०० कोडाकोड़ी कालोदधि समुद्र ३६६६ ११७६ २८१२६५० कोड़ाकोड़ी पुष्करार्ध द्वीप २०१६ ४८२२२०० कोडाकोड़ी ये समस्त ज्योतिष्क जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के चारों तरफ परिमंडलाकार (गोल घेराव प्रमाणे) परिभ्रमण करते रहते हैं। अर्थात-ये ज्योतिष्क विमान लोकमर्यादा या प्राकृतिक स्वभाव से सदैव स्वयं फिरा करते हैं। तथापि ऋद्धिविशेष के लिए पाभियोग्य (सेवक) नामकर्म उदय है जिनको ऐसे नित्यगति से स्नेह रखने वाले देव भ्रमण कराते हैं। अर्थात् वे क्रीड़ाशील होकर पूर्व दिशा में सिंहाकृति, दक्षिण दिशा में गजाकृति, पश्चिम दिशा में वृषभाकृति तथा उत्तर दिशा में अश्वाकृति रूप को धारण करके विमान को उठाकर अत्यन्त वेग से भ्रमण कराते हैं। वे देव परिभ्रमण करते हुए विमानों के नीचे गमन करते हैं तथा सिंह आदि के रूप में विमानों को वहन करते हैं। * चन्द्र के विमान को सोलह हजार (१६०००) देव वहन करते हैं । * सूर्य के विमान को सोलह हजार (१६०००) देव वहन करते हैं। * ग्रह के विमान को आठ हजार (८०००) देव वहन करते हैं। * नक्षत्र के विमान को चार हजार (४०००) देव वहन करते हैं। ॐ तारा के विमान को दो हजार (२०००) देव वहन करते हैं। इन विमानों की इस प्रकार की वलयाकार गोल गति स्वभाव सिद्ध है, किन्तु कृत्रिम नहीं है। ये विमान अर्धकोठा के फल के आकार वाले और स्फटिक रत्नमय होते हैं।
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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