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________________ ३।१८ ] तृतीयोऽध्यायः [ ५६ (५) तेउकाय (अग्निकाय) जीवों की उत्कृष्ट भवस्थिति का प्रमाण तीन अहोरात्रि का है। (६) वनस्पतिकाय जीवों की उत्कृष्ट भवस्थिति दस हजार (१००००) वर्ष प्रमाण की है। इनमें से वनस्पतिकाय जीवों को छोड़कर शेष जीवों की उत्कृष्ट कायस्थिति का प्रमाण असंख्यात अवसर्पिणी तथा असंख्यात उत्सर्पिणी है । ___ वनस्पतिकाय जीवों की उत्कृष्ट कायस्थिति अनन्त उत्सर्पिणी तथा अनन्त अवसर्पिणी है। द्वीन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट भवस्थिति बारह हजार (१२०००) वर्ष की है। त्रीन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट भवस्थिति उनंचास (४६) अहोरात्रि (दिन-रात) है और चार इन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट भवस्थिति छह महीना प्रमाण की है। तथा इन तीनों की उत्कृष्ट काय स्थिति संख्यात हजार वर्ष की है। तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीव गर्भज और सम्मूछिम दो प्रकार के होते हैं। इन दोनों की भवस्थिति भिन्न-भिन्न होती है। पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीव पाँच प्रकार के हैं। मत्स्य, उरग, भुजग (परिसर्प), पक्षी और चतुष्पद। इनमें से गर्भज जलचर (मत्स्यादि), गर्भज उरपरिसर्प तथा गर्भज भुजपरिसर्प इनकी भवस्थिति पूर्व क्रोड़ वर्ष की है तथा खेचर पक्षियों की उत्कृष्ट भवस्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग की है। एवं स्थलचर (चार पाँव वाले जानवरों) की उत्कृष्ट भवस्थिति तीन पल्योपम की है। इसमें सम्मूछिम जलचर मत्स्य जीवों की उत्कृष्ट भवस्थिति पूर्व क्रोड़ वर्ष की है। उरपरिसर्प की त्रेपन हजार (५३०००) वर्ष की है। भुजपरिसर्प को बयालीस हजार (४२०००) वर्ष की है। स्थलचर पक्षियों की बहत्तर हजार (७२०००) वर्ष की है। तथा सम्मूर्छन जीवों की उत्कृष्ट भवस्थिति चौरासी हजार (८४०००) वर्ष की है। पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवों की उत्कृष्ट कायस्थिति सात, आठ भव भ्रमण रूप है एवं सम्मूछिम तिर्यंच पंचेन्द्रिय की उत्कृष्ट कायस्थिति सात भव भ्रमण की है। सारांश यह है कि इन सबकी कायस्थिति का उत्कृष्ट प्रमाण सात, आठ भव भ्रमण करने तक है। समस्त मनुष्य और तिर्यंच जीवों की कास्थिति का जघन्य प्रमाण अन्तर्मुहूर्त्तमात्र
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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