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________________ ५० ] श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ १।२२ जन्म आकाशगतेः ( उड्डुनस्य) कारणं भवति, किन्तु तदर्थं शिक्षायाः तपसो वा आवश्यकता न जायते । तथैव देवगत्यां समुत्पन्नानां देवानां देवीनां च एवं नरकगत्यां समुत्पन्नानां नारकजीवानां अवधिज्ञानं स्वयं प्राप्तं भवतीति ।। २२ ।। * सूत्रार्थ - नारक और देवों को भवप्रत्यय अवधिज्ञान होता है । केवल नारकी जीवों को और देवताओं को अवधिज्ञान जन्मसिद्ध 'भवप्रत्यय' निमित्त से होता है ।। २२ ।। विवेचन फ पूर्व सूत्र में अवधिज्ञान जो दो प्रकार का कहा है, उनमें से नारक और देवों के जो यथायोग्य अवधिज्ञान होता है, वह भवप्रत्यय अवधिज्ञान कहा जाता है । अर्थात् - जो ज्ञान जन्म के साथ ही तत्काल उत्पन्न हो उसको भवप्रत्यय अवधिज्ञान कहते हैं । यहाँ पर प्रत्यय शब्द का अर्थ तु या निमित्त कारण है। इसलिए भवप्रत्यय, भवहेतुक या भवनिमित्त ये सब शब्द एकार्थवाचक हैं। क्योंकि – नारक और देवों के अवधिज्ञान में तो भव में उत्पन्न होना ही कारण माना है । जैसे -पक्षियों को उस भव में जन्म लेने से ही आकाश में गमन करना स्वभाव से आ ही जाता है । उसके लिए उसको शिक्षा और तप कारण नहीं । उसी प्रकार जो जीव- श्रात्मा देवगति या नरकगति प्राप्त करता है, उसको अवधिज्ञान भी स्वयं प्राप्त हो ही जाता है । वहाँ पर शिक्षा और तप इन दोनों ही कारणों का प्रभाव है । इसके लिये यम-नियमादि अनुष्ठान की अपेक्षा नहीं रहती है । जन्मसिद्ध अवधिज्ञान भवप्रत्यय कहलाता है । यद्यपि भवप्रत्यय अवधिज्ञान में भी कर्म के क्षयोपशम की आवश्यकता अवश्य है, तो भी देव का या नारक का भव मिलने पर अवधिज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम अवश्य होता है । इसलिये क्षयोपशम की अपेक्षा से भव की प्रधानता होने से देवभव और नारकभव में होने वाला अवधिज्ञान 'भवप्रत्यय' ही है । प्रश्न- नारक और देवों के अवधिज्ञान के विषय में क्षेत्र की मर्यादा कितनी है ? उत्तर - सातों नरकों में अवधिक्षेत्र इस प्रकार है ( १ ) पहले नरक में – जघन्य से ३ । । कोस और उत्कृष्ट से ४ कोस अवधिक्षेत्र की मर्यादा है । (२) दूसरे नरक में – जघन्य से ३ कोस और उत्कृष्ट से ३ ।। कोस अवधिक्षेत्र की मर्यादा है । (३) तीसरे नरक में - जघन्य से २॥ कोस और उत्कृष्ट से ३ कोस अवधिक्षेत्र की मर्यादा है। मर्यादा (४) चौथे नरक में – जघन्य से २ कोस और उत्कृष्ट से २।। कोस अवधिक्षेत्र की मर्यादा है । (५) पाँचवें नरक में - जघन्य से १|| कोस और उत्कृष्ट से २ कोस अवधिक्षेत्र की I (६) छठे नरक में - जघन्य से १ कोस और उत्कृष्ट से १।। कोस प्रवधिक्षेत्र की मर्यादा है ।
SR No.022532
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tikat tatha Hindi Vivechanamrut Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages166
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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