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१११४ ] प्रथमोऽध्यायः
[ ३५ प्रत्यभिज्ञान कहते हैं । अर्थात्-भूतकाल में अनुभूत वस्तु-पदार्थ को वर्तमानकाल में देखते हुए 'वही यह वस्तु-पदार्थ है जो मैंने पूर्व में देखी थी' इस प्रकार का ज्ञान, वह संज्ञाज्ञान है। अन्य ग्रन्थों में इस ज्ञान को प्रत्यभिज्ञान (प्रत्यभिज्ञा) कहते हैं। यह भूतकाल के विषय को वर्तमानकाल का विषय बनाने वाला है।
(४) चिन्ताज्ञान-साध्य' और साधन दोनों के अविनाभावसम्बन्धरूप व्याप्तिज्ञान को चिन्ताज्ञान या तर्कज्ञान कहते हैं। अर्थात्-भविष्यत्काल की विचारणा यानी तर्क का चिन्तन करना, वह चिन्ता या तर्क है । यह ज्ञान भविष्यत्काल के विषय को ग्रहण करने वाला है।
(५) अभिनिबोध (प्राभिनिबोधिक) ज्ञान-साधन के द्वारा जो साध्य का ज्ञान होता है, उसे अनुमान या प्राभिनिबोधज्ञान कहते हैं। यहाँ अभिनिबोध शब्द मति आदि सभी ज्ञान के लिए सर्व सामान्य है तथा विशेष प्रकार के उस-उस मतिज्ञान के लिए मति आदि शब्द हैं। इनमें से मतिज्ञान में प्रत्यक्ष का अन्तर्भाव, प्रत्यभिज्ञान में उपमान का अन्तर्भाव और अनुमान में अापत्ति का अन्तर्भाव जानना चाहिए । इसी तरह से आगम तथा प्रभावप्रमारण का भी अन्तर्भाव यथायोग्य जानना चाहिए ॥१३॥
* मतिज्ञानस्योत्पत्ती निमित्तानि * तदिन्द्रियाऽनिन्द्रियनिमित्तम् ॥ १४॥
* सुबोधिका टीका * तद्=पूर्वकथितमेतद्मतिज्ञानं द्विप्रकारं भवति। तद्यथा-इन्द्रियनिमित्तं अनिन्द्रियनिमित्तं चेति । तत्र स्पर्शेन्द्रियादीनां पञ्चानां स्पर्शादिषु पञ्चषु एव स्वविषयेषु यद्ज्ञानं भवति तद् 'इन्द्रियनिमित्तम् ।' अनिन्द्रियनिमित्तं मनोवृत्तिः अोघज्ञानं चेति । अत्र मनोवृत्तिजन्यज्ञानस्य तथा सर्वेन्द्रियजन्य ज्ञानस्य च अोघज्ञानं-सामान्यज्ञानमिति यावत् ॥ १४ ॥
* सूत्रार्थ-वह मतिज्ञान इन्द्रियों और अनिन्द्रिय (मन) के निमित्त से उत्पन्न होता है। अर्थात्-वह मतिज्ञान पाँच इन्द्रियों और छठे मन की सहायता से उत्पन्न होता है ।। १४ ॥
१. साध्य-वस्तु-पदार्थ जो सिद्ध किया जाय, उसे 'साध्य' कहते हैं। या अनुमान का जो विषय हो, उसे भी
'साध्य' कहते हैं । जैसे पर्वत में वह्नि-अग्नि। २. साधन-साध्य वस्तु-पदार्थ के अविनाभावी चिह्न को 'साधन' कहते हैं। जैसे वह्नि-अग्नि का साधन धूम
धूमाड़ा है।