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३४ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ १११३ अपरिपूर्ण है । पंचम केवलज्ञान तो सकलप्रत्यक्ष है; क्योंकि वह सम्पूर्ण कालिक वस्तु-पदार्थों को तथा उनकी अनन्तानन्त अवस्थाओं को विषय करने वाला और नित्य है । इसलिए केवलज्ञान को सकलप्रत्यक्ष कहा जाता है । इसके अलावा मतिज्ञान को भी उपचार से या व्यवहार से प्रत्यक्ष कहते हैं। कारण कि उसमें श्रुतज्ञान की अपेक्षा अधिक स्पष्टता रहा करती है । मुख्य रूप से तो वह परोक्ष रूप में ही है। अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान और केवलज्ञान ये तीनों प्रत्यक्ष ज्ञान के समीचीन प्रकारभेद भी प्रमाण ही हैं ।।१२।।
* मतिज्ञानस्य पर्यायवाचकशब्दाः * मतिः स्मृतिः संज्ञा चिन्ताऽभिनिबोध इत्यनर्थान्तरम् ॥ १३ ॥
* सुबोधिका टोका * मतिज्ञानस्य पर्यायवाचकशब्दाः एतस्मिन् सूत्रे कथिताः सन्ति । तद्यथामतिज्ञानं, स्मृतिज्ञानं, संज्ञाज्ञानं, चिन्ताज्ञानं, आभिनिबोधिकज्ञानमित्यनर्थान्तरम् । मतिः अनुभवः, स्मृतिःस्मरणं, संज्ञा प्रत्यभिज्ञानं, चिन्ता तर्कः, अभिनिबोधः= आभिनिबोधिकः अनुमानम् । एतद् पञ्चकमेव अनर्थान्तरमेकार्थवाचकमिति । एतानि सर्वाणि एकार्थवाचकानि सन्ति ।। १३ ।।
* सूत्रार्थ-मति, स्मृति, संज्ञा, चिन्ता और अभिनिबोध ये पाँचों शब्द अनर्थान्तर=एकार्थवाचक यानी पर्यायवाची हैं ।। १३ ।।
विवेचन मति यानी अनुभव (विद्यमान का ज्ञान), स्मृति यानी स्मरण, संज्ञा यानी पहचान, चिन्ता यानी तर्कचिन्तन (भावी का विचार), तथा अभिनिबोध यानी अनुमान (सर्व प्रकार से निर्णय) ये सभी मतिज्ञान से भिन्न नहीं हैं । अर्थात्-ये पाँच पर्यायवाची शब्द हैं। एक अर्थ के वाचक शब्द हैं । ये मतिज्ञान के ही भेद हैं, क्योंकि मतिज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम होने से ही होते हैं। सामान्य रूप से यहाँ मति आदि शब्द एकार्थवाचक होने पर भी विशेष रूप से इनमें प्रत्येक शब्द में अर्थभेद होता है। वह इस प्रकार है
(१) मतिज्ञान-इन्द्रियों तथा मन के द्वारा वर्तमानकाल में विद्यमान किसी भी वस्तुपदार्थ का जो आद्यज्ञान-बोध होता है, उसको अनुभव या मतिज्ञान कहते हैं। यह ज्ञान वर्तमानकाल के विषय को ग्रहण करने वाला है।
(२) स्मृतिज्ञान-कालान्तर में उस जाने हुए वस्तु-पदार्थ का 'तत्-वह' इस तरह से जो याद-स्मरण आना, इसको स्मृतिज्ञान कहते हैं । यह भूतकाल के विषय को ग्रहण करने वाला है। अर्थात् पूर्वकाल में अनुभूत वस्तु-पदार्थ की स्मृति यानी स्मरण कराने वाला है।
(३) संज्ञाज्ञान–अनुभव और स्मृति इन दोनों के संयोगरूप ज्ञान को संज्ञाज्ञान या