________________
श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
* परोक्षस्वरूपम् आद्ये परोक्षम् ॥ ११ ॥ * सुबोधिका टोका
आदौ भवमाद्यम् । तस्मिन् श्राद्ये मत्यादिपञ्चज्ञानापेक्षया श्राद्यद्वये मति श्रुतज्ञाने परोक्षं प्रमाणं भवतः । प्रक्षैः परं = इन्द्रियैः परं परोक्षं, प्रमायाः विषयं प्रमाणम् । निमित्तापेक्षयाऽऽद्ये परोक्षे, यतः मतिज्ञानमिन्द्रियनिमित्तकं, अनिन्द्रियं मनो निमित्तकञ्च । तथा श्रुतज्ञानं मतिपूर्वकं परस्योपदेशाच्च भवति ।। ११ ।।
३२ ]
[ १।११-१२
* सूत्रार्थ -मत्यादि पाँच प्रकार के ज्ञानों में से प्रथम के दो ज्ञान [ मतिज्ञान और श्रुतज्ञान ] परोक्ष हैं अर्थात्-परोक्षप्रमारणरूप हैं ।। ११ ।।
5 विवेचन 5
जो आदि में है, उसको ही प्राद्य कहा जाता है । इसलिए पूर्व कथित “मति श्रुतावधिमन:पर्यय-केवलानि ज्ञानम् ॥६॥ " इस सूत्र के अनुसार आदि के दो मतिज्ञान और श्रुतज्ञान परोक्ष प्रमाण रूप हैं । जिस ज्ञान के उत्पन्न होने में जीव श्रात्मा से भिन्न परवस्तु पदार्थ की अपेक्षा होती है, उसको परोक्ष कहा गया है। जैसे यहाँ मतिज्ञान तथा श्रुतज्ञान को परोक्षप्रमाण कहा है। कारण कि ये दोनों ही ज्ञान निमित्त की अपेक्षा रखते हैं । अपायसद्द्रव्यतया मतिज्ञान परोक्ष है ।
तदिन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तम् ।। १-१४ ।। यह आगे आने वाले सूत्र में कहा है कि आत्मा से भिन्न स्पर्शेन्द्रियादि पाँचों इन्द्रियों तथा अनिन्द्रिय-मन इन छह निमित्तों से श्रात्मा में मतिज्ञान उत्पन्न होता है । इसलिए यह मतिज्ञान श्रपायसद्द्रव्यरूप है, इतना ही नहीं निमित्त नित्य नहीं होने के कारण परोक्ष भी है । आत्मा में मतिज्ञान पूर्वक ही श्रुतज्ञान होता है और अन्य के उपदेश से भी श्रुतज्ञान उत्पन्न होता है । इसलिए श्रुतज्ञान भी परोक्ष है । यहाँ विशेषता यह है कि मतिज्ञान और श्रुतज्ञान में इन्द्रिय तथा मन आत्मा से भिन्न पुद्गल रूप हैं, तो भी मतिज्ञान में इन्द्रिय और मन दोनों ही निमित्त पड़ते हैं तथा श्रुतज्ञान में तो मात्र मन ही निमित्त पड़ता है। ऐसा होने पर भी श्रुतज्ञान मतिज्ञानपूर्वक ही होता है । इसलिए श्रुतज्ञान में उपचार से इन्द्रियाँ भी निमित्त पड़ती हैं । जैसे कि - पर का उपदेशादि सुनने में श्रोत्र न्द्रिय निमित्त है । यही मतिज्ञान है तथा सुने हुए शब्द के विषय में उसका श्रालम्बन लेकर प्रर्थान्तर के विषय में जो विचार करते हैं, वही श्रुतज्ञान है । उसमें भले ही मुख्य रूप से बाह्य निमित्त मन होने पर भी उपचार से श्रोत्रेन्द्रिय भी निमित्त कही जाती । कारण कि श्रवण किये बिना विचार नहीं हो सकता ।।११।।
* प्रत्यक्षस्वरूपम्
प्रत्यक्षमन्यत् ॥ १२ ॥
* सुबोधिका टीका *
पूर्वोक्तं मतिज्ञानात् श्रुतज्ञानाच्च यदन्यत् त्रिविधं ज्ञानं [ अवधि - मन:पर्यय