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जीवन -झलक
जन्म- वि.सं. १९७३, भाद्रपद शुक्ला द्वादशी, चाणस्मा (उत्तर गुजरात) २८-९-१७
दीक्षा- वि.सं. १९८८, कार्तिक (मृगशीर्ष) कृष्णा २, उदयपुर (राज. मेवाड़) २७-११-३१ गणि पदवी- वि.सं. २००७, कार्तिक (मृगशीर्ष) कृष्णा ६, वेरावल (गुजरात) १-१२-५० पंन्यास पदवी- वि.सं. २००७, वैशाख शुक्ला ३ (अक्षय तृतीया) अहमदाबाद (गुजरात) ९-५-५१
उपाध्याय पव- वि.सं. २०२१, माघ शुक्ला ३, मुंडारा (राजस्थान) ४-२-६५
आचार्य पद- वि.सं. २०२१, माघ शुक्ला ५ (वसंत पंचमी) मुंडारा ६-२-६५
पूज्यपाद श्री प. पू. सूरिचक्रचक्रवर्ती आचार्यदेव श्रीमद् विजय नेमिसूरीश्वरजी म.सा. के पट्टालंकार साहित्य-सम्राट् आचार्यप्रवर श्रीमद् विजय लावण्यसूरीश्वरजी म.सा के पट्टविभूषण कविदिवाकर आचार्यवर्य श्रीमद् विजय दक्षसूरीश्वरजी म.सा. के पट्टधर हैं जो परम तपस्वी महाकवि तथा लोकनायक हैं और जगत्-कल्याण के लिए सतत जागरूक हैं। आप भगवान् महावीर के अहिंसामृत को पिलाने हेतु ६० वर्षों से घर-घर, नगर-नगर और ग्राम ग्राम पैदल विहार कर रहे हैं। आपकी सौम्यता की उपमा अमृत-निर्झर से दी जाती है। शीतलता के तो मानों आप हिम सरोवर हैं और विराटता की तुलना हिमगिरि से देना उपयुक्त होगा। आपने राजस्थान की मरुभूमि को ज्ञान गंगा से प्रवाहित करने हेतु इसे ही अपनी कर्मभूमि बनाया (शेष अन्तिम फ्लैप पर)