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________________ 5 मूलसूत्रम् * हिन्दी पद्यानुवाद 5 मूलसूत्रम् मूलसूत्रम् ऋजु विपुलमति मनः पर्यायः ॥ २४ ॥ विशुद्धयप्रतिपाताभ्याम् तद्विशेषः ।। २५ ।। तुरिय मनःपर्याय के दो भेद ऋजुमति - विपुलमति । विपुलमति में विशुद्धता, विकसित कभी घटती नहीं । पर ऋजुमति में कम विशुद्धि, अलोप को भी मान के । इन दो गुणों से युक्त दो हैं, भेद चतुर्थ सुज्ञान के ।। १७ ।। ( ६ ) - * हिन्दी पद्यानुवाद विशुद्धि क्षेत्र स्वामि विषयेभ्योऽवधिमनः पर्याययोः ।। २६ ।। * हिन्दी पद्यानुवाद विशेषता है चार चौथे, और तीसरे ज्ञान में । शुद्धतर है अवधिज्ञान से, मनः अल्प शुद्धि अवधि में | क्षेत्र नाना से लगाकर, जाने ये पूर्णलोक को । ज्ञान तीसरा और चौथा, अढीद्वीपवर्ती चित्त को ।। १८ ।। चारों गति के जीव को, शुभभाव से अवधि मिले । ज्ञान चौथा मनः पर्यव, मात्र संयमी मुनि को मिले ।। सपर्याय सर्वरूपी द्रव्य को, जाने अवधिज्ञान से । ग्रहे तदनन्तमा भाग को, मनः पर्यवज्ञान से ।। १२ । मतिश्रुतयोनिबन्धः सर्वद्रव्येष्वसर्व पर्यायेषु ।। २७ ।। रूपिष्ववधेः ॥ २८ ॥ तदनन्तभागे मनः पर्यायस्य ॥ २६ ॥ जाने मति श्रुत सर्वद्रव्य, तद् परिमित पर्याय भो । तथा अवधि रूपी पदार्थ को, सीमित पर्याय द्वारा ही ॥ रूपी में गति अवधि की, पर्याय की भी अल्पता । उसके अनन्त भाग में है, मनः पर्यव ग्राह्यता ।। २० ॥
SR No.022532
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tikat tatha Hindi Vivechanamrut Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages166
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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