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________________ * हिन्दीपद्यानुवाद भेद ये सब अर्थना के, व्यञ्जना के भी और हैं। चक्षु मन इन दो बिना ये, चार इन्द्रिय अवग्रह है ।। बहु इत्यादि द्वादश से, तुरीय इन्द्रिय गुणन से । अष्ट चत्वारिंशत् भेद हुए, व्यंजन-अवग्रह के ।। १३ ॥ विशेष स्वभाव - जन्योत्पातिकी, कार्मिकी पारिणामिकी । वैनेयिकी परिणाम जन्या, चार बुद्धि मति संग्रही । शतत्रयोपरि चत्वारिंशत्, भेद सारे हैं कहें । पूर्वोक्त चारों भेद नन्दी-सूत्र में मति में गिने । १४ ।। ॐ मूलसूत्रम् श्रुतं मतिपूर्व द्वयनेकद्वादशभेदम् ॥ २० ॥ * हिन्दीपद्यानुवाद श्रुतज्ञान है मतिपूर्वक, दो भेद से ये जानना । अंगबाह्य अंगप्रविष्ट, दो भेद से ये मानना ।। अंगबाह्य के अनेक भेद, अंगप्रविष्ट के द्वादश हैं। आचारादि अंगप्रविष्ट, बाह्य उत्तराध्ययनादि हैं ।। १५ ।। 卐 मूलसूत्रम् द्विविधोऽवधिः ॥२१॥ 'भवप्रत्ययो नारकदेवानां ॥ २२ ।। यथोक्तनिमित्तः षड्विकल्पः शेषाणाम् ॥ १-२३ ॥ * हिन्दीपद्यानुवाद दो भेद अवधिज्ञान के, भवप्रत्यय गुणप्रत्यय । जो देव-नारक जीव को हो, होता है भवप्रत्यय ॥ क्षयोपशम से नर-तिर्यग् को, होता है गुणप्रत्यय । गुणप्रत्ययावधिज्ञान के, षट्भेद होते निश्चय ।। १६ ।।
SR No.022532
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tikat tatha Hindi Vivechanamrut Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages166
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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