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________________ २६० ] तत्वार्थ सूत्र जैनाऽऽगमसमन्वय : ३७ – भवन वासियों की जघन्य आयु भी दश हजार वर्ष है । ३८ – व्यन्तरों की जघन्य आयु भी दश हजार वर्ष है । ३९ - व्यन्तरों की उत्कृष्ट आयु एक पल्य से कुछ अधिक है । ४० - ज्योतिष्कों की उत्कृष्ट आयु भी एक पल्य से कुछ अधिक है । ४१ - ज्योतिष्कों की जघन्य आयु पल्य का आठवां भाग है। ४२ - सभी लौकान्तिक देवों की उत्कृष्ट और जघन्य आयु आठ सागर है । पंचम अध्याय -:0: के द्रव्य१ – धर्म, धर्म, श्राकाश और काल अजीवकाय अर्थात् अचेतन और बहुप्रदेशी पदार्थ हैं । २ – उक्त चारों पदार्थ द्रव्य हैं । ३- जीव भी द्रव्य हैं । ४ - यह सब द्रव्य [ इसी अध्याय के ३६ में सूत्र के काल द्रव्य सहित ] नित्य अर्थात् कभी न नष्ट होने वाले, अवस्थित अर्थात् संख्या में न घटने बढ़ने वाले और रूप हैं । ५ - किन्तु इनमें से केवल पुद्गल द्रव्य रूपी हैं । ६ - धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य, और आकाश द्रव्य एक २ ही हैं। ७ – यह तीनों ही द्रव्य निष्क्रिय भी हैं । द्रव्यों के प्रदेश- [ किन्तु लोकाकाश के श्रसंख्यात प्रदेश हैं ] | अनुसार ] संख्यात, असंख्यात और अनंत हैं । ११ - पुद्गल परमाणु के एक प्रदेश मात्रता होने से प्रदेश नहीं कहे गये हैं । 5- - धर्म, अधम और एक जीव द्रव्य के प्रदेश असंख्यात २ हैं । E -- काश के अनन्त प्रदेश हैं १० - पुद्गलों के प्रदेश [स्कन्धों के
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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