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________________ परिशिष्ट नं. २ [ २५९ तिर्यञ्च जीव २७ – देव, नारकी और मनुष्यों के अतिरिक्त शेष सब जीव तिर्यञ्च हैं । देवों की आयु २८ - असुरकुमारों की आयु एक सागर, नागकुमारों की तीन पल्य, सुपर्णकुमारों की अढाई पल्य, द्वीपकुमारों की दो पल्य और शेष छह कुमारों की उत्कृष्ट आयु डेढ़ डेढ़ पल्य की है । २६ -सौधर्म और ईशान स्वर्ग के देवों की उत्कृष्ट आयु दो सागर से कुछ अधिक है । ३० – सानत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्ग के देवों की उत्कृष्ट श्रायु सात सागर से कुछ अधिक है । ३१ - ब्रह्म ब्रह्मोत्तर के देवों की श्रायु दश सागर से कुछ अधिक, लान्तव और कापिष्ठ में चौदह सागर से कुछ अधिक, शुक्र और महाशुक्र में सोलह सागर से कुछ अधिक, सतार और सहस्वार में अठारह सागर से कुछ अधिक नत और प्राणत में बीस सागर की, तथा आरण और अच्युत स्वर्ग में बाईस सागर की उत्कृष्ट आयु है । ३२ - आरण और अच्युत युगल से ऊपर नव ग्रैवेयकों, नव अनुदिशों, विजयादिक चार विमानों और सर्वार्थसिद्धि विमान में एक २ सागर श्रायु अधिक है। अर्थात् प्रथम ग्रैवेयक में तेईस सागर, नवम ग्रैवेयक में इकत्तीस सागर, नव अनुदिशों में बत्तीस सागर और पांचो अनुत्तर विमानों में तैंतीस सागर उत्कृष्ट आयु है । ३३ - सौधर्म ईशान स्वर्ग की जघन्य आयु एक पल्य से कुछ अधिक है । ३४ - पहिले २ युगल की उत्कृष्ट यु अगले अगले युगलों में जघन्य है । ३५ - नारको जीवों की जघन्य आयु भी इसी प्रकार दूसरे तीसरे आदि नरकों में पूर्व २ की उत्कृष्ट आगे २ जघन्य है । ३६ - प्रथम नरक की जघन्य आयु दश सहस्र वर्ष है ।
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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