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________________ २१६ J चरितविण मणविणए वडविणए कायविणए लोगोवया रविणए । व्याख्याप्रज्ञप्ति श० २५, उ० ७, सू० ८०२. छाया -- विनयः सप्तविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा - ज्ञानविनयः दर्शनविनयः चारित्रविनयः मनोविनयः वचः विनयः कार्याविनयः लोकोपचारविनयः । भाषा टीका - विनय सात प्रकार का कहा गया है: ज्ञान विनय, दर्शन विनय, चरित्र विनय, मनो विनय, वचन विनय, काय विनय और लोकोपचार विनय । तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय : संगति सूत्र में मन, द माने हैं । किन्तु आगम ने विस्तार की दृष्टि से सात भेद माने हैं । वचन और काय की विनय को न लेकर संक्षेप से केवल चार आचार्योपाध्याय तपस्विशैक्षग्लानगणकुल छाया संघसाधुमनोज्ञानाम् । ९, २४. वेयाबच्चे दसविहे पण ते तं जहा-आयरियवे आवच्चे उवज्झायवे आवच्चे सेहवेावच्चे गिलाणवे आवच्चे तपस्सिवे आवच्चे थेरवेच्चवच्चे साहम्मिमवेश्रवच्चे कुलवे आवच्चे गणवेश्रवच्चे संघवे भावच्चे । व्याख्याप्रज्ञप्ति श० २५, उ० ७, सू० ८०२. षैयानृत्यः दशविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा - आचार्यवैयावृत्यः, उपाध्यायवैयाहृत्यः, शैक्षवैयावृत्यः, ग्लाणवैयावृत्यः, तपस्विवैयावृत्यः, स्थविरवैयावृत्यः, साधर्मिवैयावृत्यः, कुलवैयावृत्यः, गणवैयावृत्यः, संघवैयावृत्यः । भाषा टीका - वैयावृत्य दश प्रकार का कहा गया है: - आचार्य वैयावृत्य, उपाध्याय का वैयावृत्य, शैक्ष का वैयावृत्य, ग्लान का वैयावृत्य, तपस्वियों का वैयावृत्य, स्थविर
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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