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________________ पञ्चमोऽध्यायः [ १३० - - गुणाणमासमो दव्वं, एगदव्वस्सिया गुणा। लक्खणं पजवाणं तु, उभो अस्सिया भवे ॥ उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन २८ गाथा ६. छाया- गुणानामाश्रयो द्रव्यं, एकद्रव्याश्रिता गुणाः । लक्षणं पर्यवाणां तु, उभयोराश्रिता (स्युः) भवन्ति ॥६॥ भाषा टीका-द्रव्य गुणों के आश्रित होता है, गुण भी एक द्रव्य के माश्रित होते हैं। किन्तु पर्याय द्रव्य और गुण दोनों के आश्रय होती हैं । सारांश यह है कि द्रव्य में गुण और पर्याय दोनों होती हैं। कालश्च। छविहे दवे पण्णत्ते, तं जहा-धम्मस्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासस्थिकाए, जीवस्थिकाए, पुग्गलस्थिकाए, अद्धासमये अ, सेतं दव्वणामे । अनुयोगद्वार० द्रव्यगुणपर्यायनाम सू० १२४. छाया- षड्विधानि द्रव्याणि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-धर्मास्तिकायः, अधर्मा स्तिकायः, आकाशास्तिकायः, जीवास्तिकायः, पुद्गलास्तिकायः, अद्धासमयश्च, तत् द्रव्यनाम ।। भाषा टीका-द्रव्य छै प्रकार के कहे गये हैं-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और श्रद्धा समय (काल)। संगति-आगम में कालद्रव्य को अद्धा समय भी कहा गया है। सोऽनन्तसमयः। ५, ४०. - अणंता समया । व्याख्या प्रज्ञप्ति शत० २५ उ० ५ सू० ७४७.
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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