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________________ पञ्चमोध्याय : [ १२५ धम्मो अधम्मो आगासं दव्वं इक्किकमाहियं । अणंताणि य दव्वाणि कालो पुग्गलजंतवो ॥ उत्तराध्ययन० अध्य०२८ गाथा ८. भवट्ठिए निच्चे। नन्दि० द्वादशाङ्गी अधिकार सूग ५८. छाया- धर्मः अधर्मः आकाशं द्रव्यमेकैकमाख्यातम् । अवस्थितः नित्यः । अनन्तानि च द्रव्याणि, कालः पुद्गलजन्तवः । भाषा टीका-धर्म, अधर्म और आकाश द्रव्य एक २ हैं । क्रिया रहित निश्चित और नित्य हैं। काल और पुद्गल द्रव्य अनंत होते हैं। असंख्येयाः प्रदेशा धर्माधमैकजीवानाम् । चत्तारि पएसग्गेणं तुल्ला असंखेजा पएणता. तं जहाधम्मस्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, लोगागासे, एगजीवे । स्थानांग० स्थान ४ उद्देश्य ३ सूत्र ३३४. छाया- चत्वारः प्रदेशाग्रेण (प्रदेशपरिमाणेन) तुल्याः असंख्येयाः प्राप्ताः। तद्यथा- धर्मास्तिकायः अधर्मास्तिकायः, लोकाकाशः, एकजीवः । भाषा टीका-प्रदेशों की संख्या की अपेक्षा से चार के बराबर २ असंख्यात प्रदेश होते हैं। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, लोकाकाश और एक जीव द्रव्य के। आकाशस्याऽनन्ताः। आगासस्थिकाए पएसट्टयाए अणंत गुणे । प्रज्ञापना पद ३ सूत्र ४१
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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