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________________ तृतीयाध्यायः [ ९१ प्रज्ञप्तौ बहुसमतुल्यौ यावत् भरतश्चैव ऐरावतश्चैव । तथैव यावत् द्वौ कूटौ प्रज्ञप्तौ । भाषा टीका -पुष्कर द्वीप के पूर्वार्ड में सुमेरु पर्वत के उत्तर दक्षिण में दो २ क्षेत्र हैं, वह भरत क्षेत्र से लगाकर ऐरावत तक सब प्रकार से बराबर हैं। उसी प्रकार पश्चिमार्द्ध में भी रचना है। प्राङ्मानुषोत्तरान्मनुष्याः। ३, ३५. माणुसुत्तरस्स णं पव्वयस्स अंतो मणुआ। - जीवाभिगम प्रतिपत्ति ३ मानुषोत्तराधिकार उहे० २ सूत्र १७८ छाया- मानुषोत्तरस्य पर्वतस्य अन्तः मनुष्याः। भाषा टीका- मनुष्य मनुष्योत्तर पर्वत के अन्दर २ ही रहते हैं। आगे नहीं रहते। आर्या म्लेच्छाश्च । ते समासओ दुविहा परणत्ता, तं जहा-आरिमा य मिलक्खू य । प्रज्ञापना पद १ मनुष्याधिकार छाया- तो समासतः द्विविधौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा-आर्याश्च म्लेच्छाश्च । भाषा टीका - मनुष्य संक्षेप से दो प्रकार के होते हैं - आर्य और म्लेच्छ । संगति-यहां सूत्र और आगम के शब्द २ मिलते हैं। भरतैरावतविदेहाः कर्मभूमयोऽन्यत्र देवकुरूत्तरकुरुभ्यः। . ३, ३७. से किं तं अकम्मभूमगा? कम्मभूमगा परणरसविहा
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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