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________________ ६० ] तस्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय : धायइखंडे दीवे पुरच्छिमद्धे णं मंदरस्स पव्व यस्स उत्तरदाहिणे णं दो वासा पन्नत्ता, बहुसमतुल्ला जाव भरहे चेव एरवए चेव ....."धाततीखंडदीवे पञ्चच्छिमद्धे णं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणे णं दो वासा पण्णत्ता बहुसमतुल्ला जाव भरहे चेव एरवए चेव । इच्चाइ । स्थानांग स्थान २ उद्देश्य ३ सूत्र ६२ छापा- धातकीखण्डे द्वीपे पूर्वार्दै मन्दिरस्य पर्वतस्य उत्तरदक्षिणयोः द्वौ वर्षों प्रज्ञप्तौ । बहुसमतुल्यौ यावत् भरतश्चैव ऐरावतश्चैव..... धातकीखण्डद्वीपे पश्चिमा मन्दिरस्य पर्वतस्य उत्तरदक्षिणयोः द्वौ वर्षों प्रज्ञप्तौ बहुसमतुल्यौ यावत् भरतश्चैव ऐरावतश्चैव । इत्यादि । भाषा टीका - धातकी खण्ड द्वीप के पूर्वार्द्ध में सुमेरु पर्वत के उत्तर दक्षिण में दो २ क्षेत्र हैं। भरत से ऐरावत तक वह सब प्रकार से बराबर हैं । धातकी खण्ड द्वीप के पश्चिमार्द्ध में सुमेरु पर्वत के उत्तर दक्षिण में दो २ क्षेत्र हैं। बह भरत क्षेत्र से लगाकर ऐरावत तक सब प्रकार से बराबर हैं। संगति - धातकी खण्ड के पूर्वार्द्ध में भरतादि ऐरावत पर्यंत सात क्षेत्र हैं और पश्चिमार्द्ध में भी इसी प्रकार सात क्षेत्र हैं। जिससे वहां दो भरत दो ऐरावत आदि होतेहैं। पुष्कराढे च। ३, ३४. पुक्खरवरदीवड्ढे पुरच्छिमद्धे णं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणे णं दो वासा पण्णता बहुसमतुल्ला जाव भरहे चेव एरनए चेन तहेव जाव दो कुडाओ पएणत्ता । ___ स्थानांग स्थान २ उद्देश्य ३ सूत्र १३ छाया- पुष्करवरद्वीपार्दै पूर्वार्द्ध मन्दिरस्य पर्वतस्य उत्तरदक्षिणयोः द्वौ वर्षों
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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